नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन चल रहा है। कोई समर्थन में प्रदर्शन कर रहा है तो कोई विरोध में प्रदर्शन और आगजनी कर रहा है। लेकिन इन प्रदर्शन करने वाली भीड़ में अधिकतर लोग ऐसे हैं जो या तो इस कानून के बारे कुछ जानते ही नहीं, बस इसलिए प्रदर्शन कर रहे हैं की उनके नेता ने कहा है; तो कुछ ऐसे हैं जो भ्रमजाल में फंसे हैं या फेक जानकारी, विडियो या मैसेज के जरिए फंसाए गए हैं।
इसलिए अब ये जरुरी हो जाता है की CAA को लेकर जितने भी भ्रम या अफवाह लोगों के मन में है या फैलाए गए हैं, उनको दूर किया जाए। अगर कानून में कोई कमी दिखती है तो उसे तो सरकार ही दूर कर सकती है, लेकिन जिस भ्रम और अफवाह की वजह से हिंसा और आगजनी हो रहा है, उसे दूर करने का प्रयास हम सब को करना चाहिए। यहाँ सरकार के बयान और भास्कर में गृह मंत्रालय के इंटरव्यू के आधार पर छपे इंटरव्यू के आधार पर लोगों के बिच फ़ैल रहे अफवाह पर कुछ जानकारी साफ़ करने का प्रयास किया जा रहा है, खुद भी पढ़ें और लोगों को भी पढाएं(शेयर करें)।
नागरिकता संसोधन कानून (CAA) है क्या?
सीएए के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण आए उन हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म (वहाँ के अल्पसंख्यक) के लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जिनके लिए वहाँ अपने धर्म और बहू बेटियों के इज्जत को बचाए रखना मुश्किल हो गया था। जो 31 दिसंबर 2014 से पहले आ गए हैं, उन्हें नागरिकता मिलेगी।
क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश से जो भी आएगा सबको भारत की नागरिकता मिलेगी?
नहीं, ये एक्ट के तहत सिर्फ उनको ही नागरिकता मिलेगा, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके हैं और अभी भारत में ही रह रहे हैं! ये एक्ट आने वालों को नागरिकता नहीं दे रहा है, उन्हें सिर्फ पहले के कानून से अलग सिर्फ पाँच साल की रियायत मिलेगी। जो 2014 के पहले ही आ चुके हैं और भारत में ही रह रहे हैं, ये एक्ट सिर्फ उनके लिए है!
इसका विरोध क्यों हो रहा है?
विपक्षी पार्टियों और इनके फैलाए अफवाह में आए मुस्लिमों का कहना है कि सीएए में मुस्लिम शरणार्थियों को न जोड़ना भेदभाव है। ये आर्टिकल 15 का उल्लंघन है। लेकिन वो इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है की पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश में मुस्लिम कम से कम धर्म के आधार पर प्रताड़ित नहीं हो सकता और ये कानून धार्मिक रूप से प्रताड़ित लोगों के लिए है। साथ ही मुस्लिम इसेे एनआरसी से जोड़कर देख रहे हैं। भय है कि एनआरसी हुई तो गैर-मुस्लिमों को नागरिकता मिलेगी, और इन्हें परेशानी होगी।
जबकि हकीकत इसके उलट है, अगर NRC हुई तो सबको अपनी पहचान बताना होगा, चाहे वो किसी धर्म या जाति का व्यक्ति हो। CAB एकदम अलग है NRC से। CAB सिर्फ तीन देशों से आए प्रताड़ित अल्पसंख्यको को नागरिकता मिल रहा है, उसका भारत के नागरिक से कोई लेना देना नहीं है। और जब कभी NRC आएगा तो उसमें जो भी भारतीय नागरिक होगा, उसे अपनी पहचान बतानी होगी, उसका धर्म, जाति या संप्रदाय से कोई लेना देना नहीं होगा। ठीक वैसे ही जैसे गुलाब जामुन में न गुलाब होता है, न जामुन, वैसे ही CAB और NRC दोनों अलग अलग विषय है।
क्या असम की तर्ज पर ही पूरे देश में NRC होगा?
वैसे तो अभी कुछ भी तय नहीं है, बस सब अफवाह है की क्या होगा, क्या नहीं होगा। लेकिन फिर भी इसकी संभावना कम ही है की जब पूरे देश में NRC लागु होगा तो वो असम की तर्ज पर लागू हो, क्योंकि असम की परिस्थितियां, बाध्यता, हालात और मकसद बिलकुल अलग थी। और जब पूरे देश में NRC लागू किया जाएगा उसका मकसद बिलकुल अलग है। असम में NRC असम एकॉर्ड की बाध्यता और सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के अनुसार था। जबकि जब भी पूरे देश में NRC लागू होगा तो उसका मकसद सिर्फ भारत के सभी नागरिकों को सूचि तैयार करना और उन्हें नागरिकता का पहचान देना है, जो दुनियां के लगभग हर देश में है।
क्या एनआरसी होगी, और होगी तो संभावित वैध डॉक्यूमेंट की लिस्ट क्या होगी?
NRC होने की स्थिति में कागजों को लेकर भी विपक्षी पार्टियों की काफी भ्रम फैलाया गया है, जो हिंसा का एक प्रमुख कारण बना है। लेकिन हकीकत ये है की अभी सरकार ने न तो इस पर अभी चर्चा की है और न ही इसका फ्रेमवर्क बनाया है। अभी तो इसकी तारीख भी तय नहीं है। कैबिनेट में चर्चा तक नहीं हुई है, न ही कोई ड्राफ्ट तैयार हुआ है, बस गृहमंत्री ने अभी मौखिक ऐलान किया है कि 2024 के आम चुनाव से पहले देशभर में एनआरसी की जाएगी। जो की अभी सिर्फ एक घोषणा है। मतलब जो बच्चा अभी पैदा भी नहीं हुआ, विपक्षी पार्टियाँ उसके रंग, रूप, नाक, नक्शा बताकर लोगों में अफवाह फैला रहा है। इसलिए ये कह सकते हैं की अभी ये तय नहीं है की कौन से कागज इसमें लगेगा।
क्या CAA और NRC से मुस्लिम बाहर हो जाएंगे?
नहीं, इससे भारतीय नागरिक प्रभावित नहीं होंगे। उन्हें संविधान के तहत मिले मौलिक अधिकार हासिल होंगे। सीएए सहित कोई भी कानून इन अधिकारों को नहीं छीन सकता। सीएए से मुस्लिम भी प्रभावित नहीं होंगे। सीएए का उद्देश्य सिर्फ उन अल्पसंख्यकों की रक्षा करना है जो तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक कारणों से सताए गए हैं और भारत में आकर शरण ले चुके हैं। किसी भी देश या धर्म का अन्य नागरिक भी पहले की तरह ही भारत के नागरिकता कानून 1955 की धारा 6 के तहत आवेदन कर सकता है। मौजूदा संशोधन उसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करता है।
सीएए से पहले जैसे अन्य देशों के नागरिकों को नागरिकता मिलती थी, क्या वो मिलती रहेगी?
इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। ये लोग नागरिकता कानून 1955 की धारा 6 के तहत आवेदन कर सकते हैं। इन तीन और अन्य देशों के मुसलमान नागरिकता के लिए हमेशा आवेदन कर सकते हैं। पिछले छह साल में 2830 पाकिस्तानी नागरिकों, 912 अफगानी, 172 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई है। भारत और बांग्लादेश के बीच 2014 में सीमा समझौता हुआ था जिसमें 50 से अधिक इलाके शामिल किए गए थे जिसके बाद 14864 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई, जिसमें काफी संख्या में मुसलमान थे।
सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए पीड़ित शरणार्थियों को ही नागरिकता क्यों?
क्योंकि ऐसा माना जाता है की ये भारत के हिस्से रहे हैं, और बंटवारे के समय भी ये गाँधी जी का पाकिस्तान (पाकिस्तान तथा अब के बांग्लादेश) में चले गए अल्पसंख्यकों से ये वादा था की वो जब भी भारत आना चाहें तो आ सकता हैं। क्योंकि ये वो लोग हैं जो न तो अपनी स्वेच्छा से पाकिस्तानी बने थे, और न ही पाकिस्तान के बंटवारे को सपोर्ट किया था, बल्कि बंटवारे के कारण उधर फंस गए, जहाँ अब उन्हें अपने धर्म, परिवार को बचाना लगभग असंभव हो गया था। ऐसे अगर वो अब भारत आते हैं तो हम पर अपने राष्ट्रपिता के वादे और बंटवारे की शर्तों को पूरा करने की नैतिक जिम्मेवारी है।
असम में एनआरसी की लिस्ट से बाहर हुए हिंदुओं को क्या सीएए के द्वारा नागरिकता मिलेगी?
बिलकुल। अगर ये आवेदन करते हैं तो इनको नागरिकता मिल सकती है। लेकिन अभी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। एनआरसी में बाहर हुए किसी को भी बाहर नहीं किया जा रहा है, अभी सभी लोगों के पास ट्रिब्यूनल से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने का विकल्प खुला है, चाहे वो किसी धर्म के हों, और सरकार इसके लिए उन्हें क़ानूनी सहायता भी उपलब्ध करवा रही है। अगर सभी जगह से उन्हें लाभ नहीं मिलता है तो नए कानून के तहत नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
सीएए से कुल 31 हजार के करीब लोगों को ही फायदा मिलने की बात कही जा रही है। क्या ये सही है?
अभी कोई सत्यापित आंकड़े नहीं हैं, कुल कितने लोगों को इसका फायदा मिलेगा। लेकिन नागरिकता के लिए जितने आवेदन आए हैं उसके आधार पर यह संख्या 31,313 है। पहले ये प्रावधान नहीं था, इसलिए लोग आवेदन नहीं कर रहे थे, इसलिए इस आंकड़े के बढ़ने की संभावना है। राज्यसभा में बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने इस सवाल के जवाब में कहा था कि इस बिल के बाद लाखों लोगों को फायदा होगा। एनआरसी में असम में छूटे हुए लोग भी अब इसके लिए आवेदन करेंगे।
31 दिसंबर 2014 के बाद आए शरणार्थियों का क्या होगा। वो कैसे नागरिकता ले पाएंगे?
31 दिसंबर 2014 के बाद आए अल्पसंख्यकों को इस कानून से कोई फायदा की संभावना कम ही है, लेकिन वो इस कानून के पहले के कानून की धारा 6 के तहत नागरिकता के लिए पात्र होंगे। उन्हें कम से कम पांच साल तक भारत में रहना होगा, यह प्रावधान पहले 11 साल था। मतलब उनको इस एक्ट से सिर्फ पांच साल का फायदा पहुंचेगा। 31 दिसंबर 2014 की तारीख इसलिए तय की गई है कि कानून बनते वक्त तक आए हुए सभी शरणार्थी इसके लिए पात्र हो जाएं। पांच साल की नेचुरलाइजेशन की समय सीमा पूरी कर लें।
शरणार्थी कैसे साबित करेंगे कि वे धार्मिक रूप से प्रताड़ित हैं?
यह अधिनियम की धारा 6 या धारा 6 बी के तहत किए गए आवेदन में घोषणा के रुप में दिया जा सकता है और इसके लिए धार्मिक उत्पीड़न के लिए किसी विशिष्ट दस्तावेजी सबूत की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ कानून की अनुसूची-3 के तहत दिए गए मानदंडों को पूरा करना है।
क्या उन्हें भी नागरिकता मिलेगी जिन पर तीनों देश में कोई आपराधिक केस दर्ज है?
कानून में यह व्यवस्था की गई है कि नागरिकों के विस्थापन या देश में अवैध निवास को लेकर उन पर पहले कोई कानूनी कार्रवाई चल रही है तो उनकी स्थायी नागरिकता के लिए उनकी पात्रता प्रभावित न हो। लेकिन संबंधित देश जहां से विस्थापित हुए हैं, वहां कोई गंभीर मुकदमे हैं तो उसको लेकर जांच की प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है। लेकिन कानून अभी इसको लेकर स्पष्ट नहीं है। नियम के साथ कई उपनियम बनेंगे। अगर किसी व्यक्ति पर गंभीर मुकदमा है तो भारत का उस देश के साथ हुए समझौते के मुताबिक आगे की कार्रवाई होगी। अगर अनुसूची-3 के मानदंडों के तहत कोई व्यक्ति झूठी घोषणा देता है तो बाद में नागरिकता रद्द भी की जा सकती है।
पूर्वोत्तर के राज्यों में अभी सीएए किन-किन स्थानों पर लागू नहीं होगा?
यह संशोधन असम, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे लोगों पर लागू नहीं होगा जो संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं। बंगाल पूर्वी सीमा कानून 1873 के तहत अधिसूचित इनर लाइन के तहत आता है, जिसका प्रावधान उनकी मूल और स्वदेशी संस्कृति के संरक्षण के लिए किया गया है। हालांकि इन क्षेत्रों में रहने वाले ऐसे लोग देश के अन्य क्षेत्रों से एक आवेदन कर सकते हैं, जहां यह संशोधन लागू है और उस स्थान से सिर्फ नागरिकता से जुड़े अधिकार हासिल कर सकते हैं।
असम के एनआरसी से देश में लागू होने वाला एनआरसी किस तरह से अलग होगा?
अभी न तो इस बारे में सरकार ने कोई फ्रेमवर्क नहीं बनाया है और न ही इस पर कोई चर्चा हुई अब तक, ड्राफ्ट तक नहीं बना है इसका, कब होगा ये भी तय नहीं है। लेकिन जब भी देश भर में एनआरसी की घोषणा होगी तो असम में हुई परेशानियों से सबक लेते हुए ऐसे नए नियम और निर्देश जरुर बनाए जाएंगे जिससे भारत में जन्म लेने वाले किसी भी मूल नागरिक को कोई परेशानी न हो।
एनआरसी और सीएए में जो लोग शामिल नहीं हो पाएंगे, क्या उन्हें डिटेंशन कैंपों में रखा जाएगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलीला मैदान के भाषण में ये साफ़ कर चुके हैं की ये एकदम भ्रम और सफ़ेद झूठ है, न किसी को डिटेंशन सेंटर में रखा जाएगा, और न कोई डिटेंशन सेंटर भारत में है! ऊपर से अभी NRC का आना भी तय नहीं है। लेकिन ऐसी संभावना जताई जा रही है की ऐसे लोगों का कार्ड रद्द करने से पहले उन्हें सुनवाई का पूरा अधिकार मिलेगा। प्रक्रिया चलने तक उन्हें किसी अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। ऐसे में पड़ोसी देशों से बात की जाएगी और अगर पड़ोसी देश अपने नागरिकों को वापस लेने को तैयार हो जाता है तो उसे सपुर्द कर दिया जाएगा। ऐसा नहीं होता है तो ऐसे लोगों को वर्क परमिट दिया जा सकता है। ऐसे में उन्हें भारतीय नागरिकता कानून की धारा 6 के तहत मिलने वाले अधिकार ही मिलेंगे। (सभी सवालों के जवाब गृह मंत्रालय के अधिकारियों और संसद में दिए गए बयानों के आधार पर हैं)
CAA लाने की जरुरत क्यों पड़ी?
राजस्थान के जोधपुर में ही अकेले 21 हजार धार्मिक उत्पीड़न के शिकार होकर भारत आए शरणार्थी रहते हैं। कोई मजदूरी, कोई कबाड़ी तो कोई पत्थरों की खानों में कामकर परिवार का पालन-पाेषण कर रहा है। अधिकांश झुग्गियों में रहते हैं। हाल ही में केंद्रीय जलशक्ति मंत्री ने सांसद कोटे से इनके विकास के लिए दस लाख रुपए देने की घोषणा की है। यहां इन्हें भी प्रधानमंत्री आवास योजना में जोड़ने और नौकरी दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं। दिल्ली के मजनूं टीला इलाके में करीब 700 पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी परिवार रह रहे हैं। यहां भी इनकी स्थिति बेहद खराब है। सड़क किनारे छोटी-छोटी दुकाने खोलकर गुजारा कर रहे हैं। लोगों को अंधेरे में रहना पड़ रहा है। इनके करीब 100 बच्चे पास के एमसीडी स्कूल में पढ़ते हैं। गुजरात में शरणार्थियों के 750-800 परिवार हैं। इनमें अधिकांश मजदूरी करके अपना गुजारा कर रहे हैं। ये कच्छ से अहमदाबाद तक रोजगार के लिए फैले हुए हैं। नागरिकता नहीं होने से सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। इन्हें भी एक आम इंसान के जैसा जीवन देने के मानवीय पहल के तहत इस कानून को लाया गया है।
इस आर्टिकल का मकसद है, लोगों के बिच में फैले अफवाह और भ्रम की स्थिति को दूर कर शांति बनाए रखने में सरकार और समाज की मदद की जा सके। साथ ही समाज में अफवाहों की वजह से पनप रहे नफरत की राजनीति को भी दूर किया जा सके। अगर आपके पास भी कोई उपयोगी आर्टिकल या पोस्ट है तो आप उसे हमारे वेबसाइट पर रजिस्टर करके प्रकाशित कर सकते हैं। आप हमसे ट्विटर और फेसबुक पर जुड़कर भी हमें सपोर्ट कर सकते हैं।