स्वतंत्रता के स्वर्ण विहान हिन्दुस्थान हो!

स्वतंत्रता के स्वर्ण विहान हिन्दुस्थान हो!

 

गीत, अगीत, अनुगीत के विधान तुम

कविता की शब्द-चारूत्ता के शोभा-धाम हो!

भूधर-विपिन-लतादिक, भूति-भावित

स्मरण बारंबार, दिव्य-शक्ति कीर्तिमान हो!

 

उपमा के, उपमान के प्रकटित नव्य विधान

राष्ट्रदूत वीर-व्रती धीर तू महान हो!

शत्रुहंता, निजधरती की अस्मिता के रक्षक

स्वतंत्रता के स्वर्ण विहान हिन्दुस्थान हो!

 

मातृभूमि के प्रहरी जागे तू स्वदेश हित

करने स्वतंत्र उन्हें जो बन्धनों में बन्ध थे!

उखाड़ने, करने विद्रुप दासता के बेड़ियों को

नहीं कहीं उचित कुछ और अनुबन्ध थे!

 

आये बन नायक उदात्त कवि-कल्पना के

या किसी अन्य सुन्दर काव्य-धारा के प्रबन्ध थे!

करने को क्रान्ति, आतंक और जिहाद मिटाने

वीर-धीर तुम ही तो केवल स्वर्ण-मलय सी सुगन्ध थे !

 

भारतभू के प्रहरी जागे तू स्वदेश हित

धीर वीर तुम, तुम आस अभिमान हो

सत्य संधान, विज्ञान अनुसंधान तुम

करोड़ों देशवासियों के ह्रदय के ध्यान हो!

 

शत्रुहंता, वीरव्रती, सभ्यता के रक्षक

जड़ता विनाशक, घनघोर तूफान हो

विश्ववन्द्य! उन्नतशील सदृश वीरों में

शत बार नमन, धीर – वीर तू महान हो!

 

स्वतंत्रता के स्वर्ण विहान हिन्दुस्थान हो!

 

उम्मीद है बलिदानी वीरों को समर्पित कवि आलोक पाण्डेय जी की भावपूर्ण प्रस्तुति आपको जरुर पसंद आया होगा! आलोक जी की आवाज में आप इस कविता विडियो भी आप सुन सकते हैं! पढ़ें और अपने मित्रों को भी पढाएं (शेयर करें) तथा अपने विचार, प्रतिक्रिया, शिकायत या सुझाव से नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमें अवश्य अवगत कराएं! आप गंगा न्यूज़ के साथ  ट्विटर  और  फेसबुक  पर भी जुड़ सकते हैं!

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