डेविड फ़्रॉली ( David Frawley ) एक ऐसा नाम है जो सभी सनातनियों को पता होना चाहिए। वैसे ये नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं होना चाहिए था लेकिन फिर भी बहुत से लोग आज तक इनके बारे में नहीं जानते हैं।
21 सितंबर 1950 को अमेरिका के एक कैथोलिक ईसाई घर में जन्में David Frawley बड़े होते होते हिप्पी विचारधारा से जुड़ गए लेकिन जीवन की उस नकारत्मकता में उन्हें अमेरिका में ही सनातन धर्म के विषय में पता चला और जैसे-जैसे वो सनातन धर्म को समझते गए उनके जीवन में सकारात्मकता आती गयी इसके लिए वो कई बार भारत यात्रा पर भी आये।
सनातन धर्म से जुड़ने के बाद उनके जीवन की दिशा ही बदल गयी और उन्होंने जितना जाना, जितना सीखा उसके बाद यही कहा कि “धन्य है सनातन” उनका ये कथन उपनिषद के ऋषि वाक्य नेति_नेति को सार्थक करता है। और ये David Frawley ने इसलिए कहा क्योंकि वेद, उपनिषद, दर्शन, योगा, आयुर्वेद, तंत्र, गणित, खगोल, चिकित्सा, अध्यात्म आदि का असीमित ज्ञान भंडार जो सनातन के पास था वो दुनिया में कहीं नहीं था।
भारत में हिंदुओ के प्रति जो दुष्प्रचार किया गया था उनका खण्डन इन्होंने अपनी पुस्तकों में खुलकर किया है “आर्य बाहरी आक्रमणकारी थे” या फिर “भारतीय समाज असभ्य था अंग्रेजों ने आकर भारत को सभ्य किया या शिक्षित किया” जैसे तमाम जो आक्षेप हिंदुओं पर थोपे गए थे, उनको साक्ष्यों के साथ सिरे से खारिज किया है।
डेविड फ़्रॉली ने भारत और हिंदुओं को लेकर बहुत से खुलासे किए हैं और खुलेमन से स्वीकारा है कि सनातन धर्म ही पूरे विश्व को सही मानवता सिखाता है और विश्व का मार्गदर्शन कर सकता है, जिसको लेकर उन्होंने 40 से अधिक पुस्तकें भी लिखी है, जिसमें से योगा, आयुर्वेद, तंत्र के साथ साथ ‘हिंदुत्व क्या है’, उतिष्ठ भारत, भगवान संत और राजा राम की महिमा, मैं हिन्दू कैसे बना, आर्य थ्योरी का झूठ, सभ्यता का उद्गमस्थल तथा हिंदू-सभ्यता का संघर्ष आदि कुछ मुख्य पुस्तकें हैं जिनके नाम मैं हिंदी अनुवाद करके लिखा हूँ।
डेविड फ़्रॉली ने अमेरिका में एक वैदिक शिक्षा संस्थान भी शुरू किए हैं जिससे लोगों का सही मार्गदर्शन किया जा सके साथ ही साथ पूरी दुनिया में खुले दिल से ये हिन्दू और भारत के समर्थन में अपना पक्ष रखते हैं इनके द्वारा दिये गए कुछ मुख्य वक्तव्य ये है-
- पश्चिम की संस्कृति से भारत की यौगिक संस्कृति की ओर बढा तो जाना कि वह अतिशय विस्तृत तो है ही साथ में असीमित ज्ञान के प्रकाश से और परमानंद से सराबोर भी है।
- पश्चिम की आध्यात्मिकता में न कोई गहराई है; न उसका कोई (परमार्थ) परम-अर्थ है।”
- मैं हिंदू धर्म को मानवों की किसी मर्यादा से बँधा नहीं मानता, वह,ब्रह्मांडीय परम्परा है। ऐसी परम्परा जो मनुष्य को सारे बंधनों से उपर उठा देती है।
- अन्य रिलीजनों-और मज़हबों ने मुक्ति की राह पर भी मनुष्यको बंदी बना कर जकड लिया है। वाह वाह क्या ढपोसली नाम मात्र मुक्ति है? मुक्त हो पर हमारे ही रिलीजन को फोलो करने के लिए बँधे हो?
- भारतीय आध्यात्मिक चेतना ही, पूरी ओतप्रोत होकर भारत में समाहित है यह चेतना ही उस (भारतीय)सभ्यता की आधारशिला है।
उपरोक्त वक्तव्यों से इनके द्वारा किये गए कार्य और हिन्दू धर्म की विशालता को समझा जा सकता है। हिंदुत्व से प्रभावित होकर इन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार किया है। वैसे इनको वामदेव शास्त्री नाम से भी जाना है।
शिक्षा, समाज और लेखन में किये गए कार्यों के कारण भारत सरकार द्वारा इन्हें 2015 में पदम् भूषण सम्मान भी दिया गया है।
राममंदिर को लेकर ये हमेशा प्रयासरत रहे हैं और इसको लेकर अनेक लेख भी लिखते रहे हैं साथ ही साथ सोशल मीडिया द्वारा भी हिंदुत्व के लिए खुलकर आवाज उठाते रहते हैं। ऐसे महान लोग के बारे में जब भी सोचता हूँ तो स्वयं को ऊर्जावान महसूस करता हूँ।
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