21 मार्च 1894 में ए मिशन इन इंडिया के निर्देशक आर ए ह्यूम ने ऑबर्नडेल,मैसाच्यूट्स से स्वामी विवेकानंद को पत्र लिखा। जाहिर था, पत्र लिखकर वे उन्हें पब्लिक डिबेट में लाना चाहते थे। मि. ह्यूम का जन्म भारत में ही हुआ था तो उन्होंने अपने पत्र में उन्हें,” Swami Vivekanand, my fellow -countryman from India” लिखा।
हयूम ये मानते थे कि जिस तरह से मिशनरी अपना काम भारत में करते हैं और जिस तरह से भारत की छवि बाहर के देशों में प्रस्तुत करते हैं वह पूरी तरह न्यायपूर्ण है। ह्यूम यह बात ज़ोर देकर कहते थे कि स्वामी विवेकानंद डेट्रॉयट और दूसरी जगहों पर भारत को और ईसाई मिशनरियों को ग़लत तरह से दिखाते हैं, उन्हें misrepresent करते हैं।
29 मार्च,1894 को स्वामीजी हयूम के पत्र का जवाब लिखते हैं, जिसमें वह यह बताते हैं कि ” मेरे पास किसी भी धर्म या उसके मानने वालों के विरोध में कहने के लिए एक भी शब्द नहीं है। सभी धर्म मेरे लिए पूर्णतः पवित्र हैं। दूसरी बात यह कहना गलत है कि मैंने यह कहा हो कि मिशनरी हमारे ग्रंथ नहीं पढ़ते। मैं यह फिर कहता हूँ कि उनमें से कुछ ही संस्कृत में लिखे ग्रंथों को पढ़ते हैं पर मैं इस पर दृढ़ता से कायम हूँ कि भारत को कभी भी ईसाईयत में पूरी तरह से कन्वर्ट नहीं किया जा सकेगा।
मैं यह बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता कि ईसाई धर्म में धर्मांतरण के बाद निचली जाति के लोगों का जीवन सुधरा है। दक्षिण के ज़्यादातर भारतीय ईसाई धर्मांतरण के बाद भी अपनी जाति साथ लगाते हैं जिसका मतलब है कि वह अपनी जातिगत पहचान को छोड़ना नहीं चाहते। मैं पूरी तरह से मानता हूँ कि अगर हिंदू समाज़ अपनी “exclusive policy” को छोड़ दे तो उनमें से नब्बे प्रतिशत वापस हिन्दू धर्म में लौट आएँगे।
मैं आपको मुझे fellow-countryman कहने पर हृदय तल से धन्यवाद देता हूँ। यह पहली बार है कि किसी यूरोपीय मूल के विदेशी ने एक मूल निवासी को इस नाम से संबोधित करने का साहस किया है। क्या आप भारत में भी मुझे इसी नाम से संबोधित करेंगें? आप भारत में रह रहे अपने मिशनरी भाइयों से भी ऐसा ही कहने और करने को कहें।
अंत में, आप शायद मुझे स्वयं मूर्ख ही कहें अगर मैं यह स्वीकार करूँ कि मेरा धर्म और समाज स्वयं को घुम्मकड़ों और घुमंतू कहानीकारों द्वारा स्वयं के हीे मूल्यांकन के लिए प्रस्तुत करता है। मेरे भाई आप मेरे समाज और धर्म के विषय में क्या जानते हैं तब भी जब आप यही जन्म लिए हों। यह असंभव है क्योंकि समाज खुलता नहीं है और सभी इसे अपने ही पूर्वानुमान से आंकलन करते हैं। प्रभु आपको मुझे fellow-contryman कहने पर आशीष दें।”
इस देश और धर्म की ट्रोलिंग कोई नई बात नहीं है। यह पुरानी प्रक्रिया है और अपने समय में जब भारत की सही पहचान को स्थापित करने को स्वामी विवेकानंद संघर्ष रत थे, उन्हें कितनी दुःसह कठिनाइयों को झेलना पड़ा होगा। स्वामी विवेकानंद हमारे बीच जीवन्त होते थे, रामकृष्ण मिशन के स्कूल में जहाँ से मेरी स्कूली शिक्षा हुई। सुबह की प्रार्थना में हममें से कोई एक उनके लेटर्स पढ़ा करता था। यह प्रार्थना सभा का मुख्य आकर्षण हुआ करता था। संतों की मनोरम भूमि के उत्कृष्ट संत को नमन!