राष्ट्रवाद के विरोध के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी की तुलना हिटलर से बंद कीजिए। यहाँ इस झूठ पर कम से कम हम विश्वास नहीं करते। राष्ट्रवाद की भावना स्पष्ट है कि इस देश ने पश्चिम से या हिटलर से नहीं सीखी है। भारत का राष्ट्रवाद, अगर राष्ट्र किसी “वाद” की परिकल्पना है तो यह पश्चिम के राष्ट्रवाद से भिन्न है।
पश्चिम का राष्ट्रवाद लूट-पाट, अमानवीय युद्ध, असभ्य प्रतियोगिता, दमन और सीमाओं को किसी भी तरह विस्तारित करना या फिर दूसरे देशों में अपनी शक्ति को स्थापित करने की असभ्य अनाधिकृत चेष्टाओं का दस्तावेज है। पर भारत का राष्ट्रवाद अगर यह वाक़ई वाद है तो हमारे सम्मुख इस उदाहरण के साथ प्रस्तुत है कि राम अपने देशवासियों को रावण के आतंक से मुक्त करने को युद्ध करते हैं, पर समृद्धशाली लंका से एक पत्थर अयोध्या नहीं लाया गया।
राष्ट्र को सुखी और संरक्षित रखने की परंपरा त्रेता युग से चली आ रही है। राम और रावण का युद्ध केवल सीता के लिए नहीं था बल्कि आर्यावर्त पर रावण की बढ़ती अनाधिकृत चेष्टा के अंत करने को था। सीता माध्यम बनीं थी और माध्यम बनी रहीं अंत तक। वरना स्वयं शक्ति की स्वरूप भगवती सीता अपने हरण के समय ही रावण को भस्म करने की शक्ति रखती थीं।
राम का वनवास माध्यम था कि पूरे सिंधु प्रदेश को जोड़ दिया जाए जिसकी ख़ातिर उनका लोक में जाना आवश्यक था। राम ने अयोध्या से निकल हर प्रदेश को एक किया और सभी जन-समूह से मदद ली क्योंकि यह राष्ट्र-निर्माण का समय था, केवल अयोध्या और सीता के स्वाभिमान की बात नहीं थी। हर युद्ध को नारी अस्मिता से जोड़ कर देखा जाता है क्योंकि स्त्री ही पृथ्वी का रूप और उसकी प्रतीक बन सकती है, पुरूष नहीं।
अयोध्या के पास लंका की तरह अकूत सम्पदा नहीं था, अयोध्या के पास रावण की तरह सोने का महल भी नहीं था, पर अयोध्या के पास थी धैर्य की शक्ति और self-control. इसी स्वनियंत्रण की वजह से अयोध्या आज अयोध्या है और लंका, लंका है। अयोध्या का धैर्य आज भी जीवन्त दिखता है।
भारत के राष्ट्रवाद को पश्चिमी राष्ट्रवाद से जोड़ कर देखने की कुचेष्टा एक boomrang के अलावा और कुछ भी साबित नहीं होगी। भारत देश की चेतना में हिटलर और उसके राष्ट्रवाद का कोई प्रभाव हो नहीं सकता क्योंकि यह भाव भारतीय चेतना में पूरी तरह अनुपस्थित है। जबरजस्ती किसी और विचारधारा को भारतीयों पर थोपना कहीं से भी स्वीकार नहीं होगा जनमानस को।
प्रधानमंत्री से उनके विरोधियों के डर का कारण कोई हिटलरवाद और नाजीवाद नहीं बल्कि यह है कि उनके पास खोने को कुछ नहीं है और जो है- धैर्य, देशसेवा,साहस और बिना रुके लक्ष्य प्राप्ति के लिए उनका समर्पण। यह वो चीज़ें हैं जिन्हें संभालना उन्हें भली-भांति आता है। ख़ैर, आप लगे रहिए मोदी को हिटलर बताने में, पर धोबी के कहने भर से न सीता का चरित्र मलिन होता है और न राम का गौरव।