प्रत्येक देश की अपनी कुछ समस्याएँ होती है! ये समस्याएँ ही उस देश को कमजोर करती रहती है! हमारे देश में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसँख्या की समस्या वर्तमान समय में यहाँ की सबसे विकराल समस्या है! इस समस्या के कारण आज भारतवासियों का जीवन नारकीय सा हो चला है! हालात यहाँ तक पहुँच गया है की भारत की धरती और यहाँ की आधारभूत सुविधाएँ इस विशाल जनसँख्या का बोझ वहन करने में असमर्थ हो रहा है! व्यवस्थाएं चरमराने के स्तर तक पहुँच चूकी है! गरीबी उन्मूलन के अनेक सरकारी उपायों और योजनाओं के बावजूद, जनसँख्या की असीमित वृद्धि गरीबी के बिज को लगातार पोषित कर रही है! अशिक्षा, रोगवृद्धि, आवास की समस्या आदि के कारण करोड़ों भारतीय, पशुओं के समान जीवन व्यतीत करने को विवश हैं!
सन 1931 में अविभाजित भारत की जनसँख्या लगभग 20 करोड़ थी! किंतु अब हमारी जनसँख्या एक अरब को पार करके डेढ़ अरब के नजदीक पहुँच रही है! इस बढ़ती जनसँख्या के कारण हमारा देश भिन्न भिन्न समस्याओं से घिर गया है! ये सही है की जो बच्चा पैदा होता है वो मेहनत करके अपना पेट भर सकता है, और औद्योगिक क्रांति की दृष्टि से देखें तो देश के श्रम शक्ति में इजाफा भी कर सकता है! तो लेकिन उसकी भी सीमाएं हैं! कितनी भी औद्योगिक क्रांति हो जाए, रोजगार के अवसर बढ़ जाएं, लेकिन भूभाग को बढ़ाया नहीं जा सकता! प्राकृतिक संसाधनों को बढ़ाया नहीं जा सकता! कहने का तात्पर्य ये है की रोजगार के अवसर पैदा कर भी लिए गए तो एक सिमित भूभाग एक सीमा तक ही मानव का बोझ वहन कर सकता है!
भारत की भूमि का क्षेत्रफल विश्व की धरती का कुल २.४ % ही है, जबकि आबादी पूरे विश्व की आबादी के लगभग चौथा बनने की तरफ है! यहाँ हर वर्ष एक नया ऑस्ट्रेलिया बन जाता है! इससे यहाँ कृषियोग्य भूमि का आभाव हो गया है! आवास बनाने, आधारभूत सुविधाएँ विकसित करने की भूमि का भी आभाव हो गया! इसकी वजह से हमारे जीवन में बहुमूल्य योगदान देने वाले अमूल्य जंगलों को काटा जा रहा है! सब जगह कंक्रीट निर्माण जारी है! इसकी वजह से हमें खेती योग्य भूमि का आभाव भी झेलना पड़ रहा है और जंगलों के कटने प्रदुषण की समस्या भी सुरसा की तरह मुंह फैला रही है! हमारी अमूल्य वन संपदा का विनाश, दुर्लभ वनस्पति का आभाव, वर्षा पर घातक प्रभाव एवं दुर्लभ जंगली जानवरों के वंश का लोप हो रहा है! इससे प्राकृतिक आपदाएं भी दिन प्रतिदन बढ़ती जा रही है!
बढ़ती जनसँख्या का बोझ ग्रामीण अर्थव्यवस्था जिसमें खेती-किसानी, कुटीर उद्योग, हस्त शिल्प उद्योग और ग्रामीण आजीविका के साधन भी नहीं उठा पा रहे हैं! अधिक जनसँख्या के लिए अधिक खाद्यान की आवश्यकता होती है! धरती से अधिक उपज के लोभ में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ गया है! इन उर्वरकों की वजह से खाने स्वाद नष्ट होने के साथ विषैला केमिकल भी पेट में जा रहा है जो अनेक रोगों को जन्म दे रही है! इसकी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों से तीव्र गति से शहरों में पलायन जारी है!
ग्राम से शहर की ओर पलायन की वजह से शहरों में भी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो रही है, जिसमें कुपोषण, अपराध, प्रदुषण, आवास की समस्या, पेयजल की समस्या, भीषण गंदगी, अवैध बस्ती, कमरतोड़ महंगाई, चिकित्सा सेवाओं का आभाव जैसी समस्याएँ तो एकदम विकराल रूप ले चूकी है, और शहरी जीवन को भी नारकीय बना रहा है! अभी आपने देखा होगा, आरे में पेड़ों की कटाई करनी पड़ी, मेट्रो शेड बनाने के लिए! सबने विरोध भी किया, लेकिन किसी ने ये नहीं कहा की जनसँख्या बढ़ रही है तो उसके लिए सुविधाओं का विस्तार तो करना ही पड़ेगा, इसलिए जनसँख्या नियंत्रण पर भी चर्चा हो!
भारत में जनसँख्या वृद्धि के अनेक कारण हैं! अज्ञानता, शिक्षा की कमी, भाग्यवाद तथा ऊपर वाले की मेहरबानी जैसे प्रमुख कारण हैं! जनसँख्या की वृद्धि के लिए सरकार की गलत नीतियाँ भी कम जिम्मेदार नहीं है! एक तो अपनी तीव्र गति से बढ़ती जनसँख्या, ऊपर से भारत में इस समय दो करोड़ बंगलादेशी शरण डाले हुए हैं! काफी बड़ी मात्रा में रोहिंग्या भी घुस चुके हैं! ये विदेशी घुसपैठिए यहाँ पर तश्करी और अपराध को बढ़ावा देने के व्यवसाय में लगे रहते हैं! भारत सरकार की नीतियाँ एकदम लचीला है! लचीला तो ठीक है लेकिन लचीला का मतलब देश को धर्मशाला बना तो नहीं हो चाहिए!
बाल विवाह, गर्म जलवायु, बहुविवाह और रूढ़िवादिता का भी जनसँख्या वृद्धि में काफी योगदान है! जहाँ हिन्दुओं में पुत्र की प्राप्ति तक संतानोत्पति चलते रहता है, पुत्र की लालसा में अनेक पुत्रियों का जन्म हो जाता है, हालाँकि अब इसमें कमी देखने को मिल रही है, लेकिन ये कमी संतोषप्रद नहीं है! वही मुसलमानों में बच्चों को अल्लाह की देन मानकर लगातार प्रजनन का क्रम चलते रहता है! अपनी गलती और नासमझी का ठीकरा अल्लाह पर फोड़ना कहाँ तक जायज है!
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है की तमाम प्रयासों और जागरूकता अभियानों के बावजूद भारत जनसँख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर पाने में बुरी तरह असफल रहा है! यदि हमें देश के भविष्य को सुधारना है और देश के सामान्य मानव को एक मानव जैसा जीवन देना तो हमें जनसँख्या नियंत्रण करना ही होगा! इसके लिए हम चीन जैसे देशों से कुछ सीख सकते हैं, जिसने काफी सफल तरीके अपने देश में ‘एक दम्पति, एक बच्चे’ के लक्ष्य का कठोरतापूर्वक पालन करके जनसँख्या को नियंत्रित किया! हालाँकि ये केवल सरकार के प्रयासों से संभव नहीं है! इसके लिए न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका, पत्रकारिता और गैर सरकारी संगठनों को सामूहिक योगदान देना होगा! शिक्षा भी इसमें अहम भूमिका निभा सकता है! परिवार नियोजन के तरीकों को घर घर तक पहुँचाने की मुहीम भी शुरू किया जाना चाहिए और समझ समझ के भी ना समझने वालों के लिए कठोर कानून का प्रावधान भी करना चाहिए!
अगर समय रहते ही जनसँख्या वृद्धि पर नियंत्रण नहीं किया गया तो इसके भयंकर परिणाम भुगतने होंगे! अगर हम इस पर रोक नहीं लगाएँगे तो फिर प्रकृति इस पर रोकक लगाएगी, जो और भी वीभत्स होगा! जब प्रकृति बढ़ती जनसँख्या का भार वहन करने से इंकार कर देगी तो, भूकंप, सुनामी, नई नई बीमारियाँ, महामारी, बाढ़, सुखाड़, जल कमी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अपराध, युद्ध जैसे चीजें जनसँख्या नियंत्रण करेगी तो दर्द असहनीय हो जाएगा! समय से नियंत्रण कर लेने पर इससे जुड़ी समस्याएँ स्वतः ही सुलझ जाएगी! प्रकृति भी सुरक्षित, मानव भी सुरक्षित और सुखी होगा!
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