Gwalior Fort | देश के सबसे खूबसूरत किलों में एक ग्वालियर का किला भी माना जाता है। आज भी यह किला पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। शहर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्वालियर किले का निर्माण आठवीं शताब्दी के दौरान किया गया था। कहते हैं इस किले का निर्माण दो भागों में हुआ है। दोस्तों इस किले में आपको कई ऐतिहासिक स्मारक भी देखने को मिलेंगे। इसमें बुद्ध जैन मंदिर और आलीशान महल के साथ-साथ सास बहू का भी मंदिर देखने को मिलेगा। तो चलिए जानते हैं ग्वालियर के किले से जुड़े कुछ रोचक तथ्य.
ग्वालियर का किला एक ऐसा किला है जो कई बार एक राजवंश के कब्जे से दूसरे राजवंश तक गया है। कहते हैं इस किले पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया है। किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश ने राज किया। इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश ने राज किया। यही नहीं 1023 ईस्वी में मोहम्मद गजनी ने इस किले पर आक्रमण किया हालांकि उसे इस दौरान हर का सामना करना पड़ा।
इस किले पर राज करने वाले आखिरी वंश महादजी सिंधिया को बताया जाता है। कहते हैं कि 1804 और 1844 के बीच इस किले पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा। हालांकि साल 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद ये किला आखिर में सिंधिया परिवार के हिस्से में आया।
1 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई ने मराठा विद्रोह के साथ मिलकर इस किले पर कब्जा किया था लेकिन जब वह जीत के जश्न में शामिल हुई तो 16 जून को जनरलहूज के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना ने उन पर हमला कर दिया। इस दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने खूब लड़ाई लड़ी और दुश्मनों को किले से बाहर कर दिया। हालांकि इसी बीच उन पर दुबारा हमला कर दिया गया और इसी दौरान 17 जून को वो वीरगति को प्राप्त हो गई. इतिहास के पन्नों को उठाकर देखा जाए तो इसमें ग्वालियर की लड़ाई के लिए लक्ष्मी बाई का नाम स्वर्ण अक्षरों वर्णित है। हालाँकि लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने अगले तीन दिन में ही इस किले पर कब्जा कर लिया था।
जब आप इस किले में प्रवेश करेंगे तो आपको कई ऐतिहासिक स्मारक दिखाई देंगे। जैसे बुद्ध और जैन मंदिर, गुजारी महल और मानसिंह महल, जहांगीर महल, करण महल और शाहजहां महल मौजूद है। कहते हैं गुजारी महल को पुरातात्विक संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है।
इस महल को राजा मानसिंह ने अपनी रानी मृगनयनी के लिए करवाया था। इस संग्रहालय में दुर्लभ मूर्तियां रखी हुई है जो पहले के इतिहास की गवाही देती है। कहते हैं इस किले की संरचना रक्षात्मक है। यानिकि किला इतना मजबूत है कि अगर कोई किले पर अटैक करने की कोशिश करता है, तो किला गिरेगा नहीं।
इस किले के अंदर प्रवेश करने के लिए दो आलीशान दरवाजे बने हुए हैं। पहले रास्ते से आप केवल पैदल जा सकते हैं जबकि दूसरे पर आप गाड़ी से भी जा सकते हैं। ये किला 350 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। किले का मुख्य प्रवेश द्वार हाथी पुल के नाम से जाना जाता है जो सीधा मान मंदिर महल की ओर ले जाता है।
इस किले के निर्माण को लेकर ये कहानी भी काफी प्रचलित है कि, राजा सूर्यसेन कुष्ठ रोग से पीडि़त थे। इस दौरान ग्वालिपा नाम के एक ऋषि ने उन्हें एक पवित्र तालाब से पानी लाकर दिया था। जैसे ही राजा ने ये पानी पिया तो वह पूरी तरह से ठीक हो गए। इसलिए सूरजसेन ने उनके नाम पर किला बनवाने का फैसला किया।
इस किले की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें आपको सास बहू का मंदिर भी देखने को मिलेगा। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर किले में सास बहू के मंदिर का क्या काम? तो दोस्तों अभी ही नहीं बल्कि पुराने समय में भी सास बहू के बीच नोंकझोंक हुआ करती थी।
दरअसल, 19वीं शताब्दी में शाही सास और बहू के बीच विवाद हुआ कि किस देवता की पूजा करनी चाहिए? अब इन दोनों सास बहू को संतुष्ट करने के लिए यहां पर एक अनोखा मंदिर का निर्माण किया गया जिसमें भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है। इसके बाद यह भगवान नहीं बल्कि सास बहू मंदिर के नाम से जाना गया। Gwalior Fort | Rani Laskhmi Bai | Scindia