Waqf Amendment Bill : हंगामे के बिच वक्फ बिल पर बनी जेपीसी की बैठक में प्रस्तावित 14 संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया है। बताया जा रहा है कि बदलावों को स्वीकार करने की पुष्टि के लिए मतदान 29 जनवरी को होगा, तथा जेपीसी की अंतिम रिपोर्ट 31 जनवरी तक प्रस्तुत की जा सकती है।
बहुत सारी शिकायतें और विवाद के बाद मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड की शक्तियां कम करने और इसके असीमित अधिकारों पर लगाम की दिशा में पिछले साल अगस्त में संशोधन बिल पेश किए थे, जिसमें वक्फ संपत्तियों का अनिवार्य वेरिफिकेशन, इसके संपत्तियों के दुरुपयोग पर रोक लगाने शामिल है। इसमें एक अनिवार्य वेरिफिकेशन उन संपत्तियों के लिए भी प्रस्तावित किया गया है, जिनके लिए वक्फ बोर्ड और व्यक्तिगत मालिकों ने दावे और जवाबी दावे किए हुए हैं। हालाँकि विपक्ष के हंगामे के बाद इस बिल को जेपीसी में भेज दिया गया था, जिसे अब संसोधन के साथ पुनः संसद में पेश किए जाने की संभावना है.
आइए जानते है की जेपीसी की बैठक में इस बिल में किन महत्वपूर्ण बदलावों को मंजूरी मिली है।
इस बिल में पहले प्रावधान था कि राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में दो गैर मुस्लिम सदस्य अनिवार्य होंगे। लेकिन अब इसमें बदलाव किया गया है। अब पदेन सदस्यों को इससे अलग कर दिया गया है। जिसका मतलब है कि वक्फ परिषदें, चाहे राज्य स्तर पर हों या अखिल भारतीय स्तर पर, कम से कम दो और ऐसे सदस्य होंगे जो इस्लाम धर्म से नहीं होंगे।
एक अन्य संशोधन के अनुसार अब कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं, इसका फैसला राज्य सरकार की ओर से नामित अधिकारी करेगा। मूल विधेयक में यह निर्णय जिला कलेक्टर पर छोड़ा गया था।
एक और अन्य संशोधन के अनुसार कानून पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा। अब शर्त ये है कि वक्फ संपत्ति पंजीकृत हो यानी जो वक्फ संपत्तियां रजिस्टर्ड है उनपर असर नही पड़ेगा। हालांकि, जो पहले से रजिस्टर्ड नहीं है उनके फैसले भविष्य में तय मानकों के अनुरूप होगा।
एक संसोधन जो यह निर्दिष्ट करता है कि भूमि दान करने की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को यह दिखाना या प्रदर्शित करना होगा कि वह कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है और यह भी स्वीकार करना होगा कि ऐसी संपत्ति के समर्पण में कोई साजिश शामिल नहीं है।
अब इन 14 बदलावों को स्वीकार करने की पुष्टि के लिए मतदान 29 जनवरी को होगा। माना जा रहा है कि जेपीसी की अंतिम रिपोर्ट 31 जनवरी तक प्रस्तुत की जा सकती है। वक्फ बिल पर बनी समिति को पहले 29 नवंबर 2024 तक रिपोर्ट पेश करने की डेडलाइन दी गई थी। हालांकि, बाद में इस समय सीमा को बढ़ा कर 13 फरवरी कर दिया गया। लेकिन अब ये सम्भावना बढ़ गयी है की शायद बजट स्तर में ही इस बिल को संसद में पेश किया जाए।
हालांकि, विपक्षी सांसदों ने जेपीसी बैठक की कार्यवाही की निंदा की और जगदंबिका पाल पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को “विकृत” करने का आरोप लगाया है। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने संवाददाताओं से कहा, “यह एक हास्यास्पद कवायद थी। हमारी बात नहीं सुनी गई। पाल ने तानाशाही तरीके से काम किया है।”
उल्लेखनीय है कि पहले भी जेपीसी की बैठक में कई बार जोरदार हंगामे हुआ था। कुछ दिनों पहले हुई बैठक में जगदंबिका पाल ने टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी पर उन्हें गाली देने का भी आरोप लगाया था। यहाँ तक की पिछले साल 22 अक्टूबर को बैठक के दौरान कई नेताओं के बीच मारपीट की नौबत आ गई थी और झड़प के दौरान कल्याण बनर्जी ने वहां रखी कांच की पानी की बोतल उठाकर मेज पर मार दिया था।
जेपीसी कमिटी ने पुरे देश से इस बिल सुझाव और संसोधन मांगे थे. इसके अलावा कमिटी ने देशभर में कई जगहों के दौरे भी किए. इस दौरान एक दिलचस्प मामला सामने आया जिसमें ये दवा किया गया की कर्नाटक में किसानों की 1500 एकड़ से अधिक जमीन वक्फ बोर्ड द्वारा कब्जा की जा रही है. जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कर्नाटक का दौरा कर उन किसानों से मुलाकात की थी, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर अतिक्रमण के लिए नोटिस दिए गए थे.
आइये समझते हैं कि वक्फ बोर्ड क्या है, इसके पास कितनी संपत्ति है, इसे इतनी असीमित शक्ति कैसे प्राप्त हुआ, इसे कौन-कौन सी पावर मिली हुई है, और ये अक्सर इतने चर्चा और विवादों में क्यों रहता है। ( What is Waqf Board, Power of Waqf Board)
वक्फ का मतलब होता है ‘अल्लाह के नाम’, यानी ऐसी जमीनें जो किसी व्यक्ति या संस्था के नाम नहीं है। वक्फ के पास काफी संपत्ति है, जिसका रखरखाव ठीक से हो सके, इसके लिए स्थानीय से लेकर बड़े स्तर पर कई बॉडीज हैं, जिन्हें वक्फ बोर्ड कहते हैं. तकरीबन हर स्टेट में सुन्नी और शिया वक्फ हैं, तथा एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी है। इनका काम उस संपत्ति की देखभाल करना, मस्जिद या अन्य धार्मिक संस्थान को बनाए रखना, और दीन के कार्यों के लिए पैसे देना है.
वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर अर्थात सर्वे कमिश्नर होता है। वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ. बोर्ड में सर्वे कमिश्नर के अलावा इसमें मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता और मुस्लिम बुद्धिजीवी जैसे लोग शामिल होते हैं.
साल 1954 में नेहरू सरकार के समय वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जिसके बाद इसका सेंट्रलाइजेशन हुआ और वक्फ बोर्ड का गठन हुआ. इसके बाद से कई बार इसमें संशोधन होता रहा, और 1995 के संशोधन से वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां मिल गयी। पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दीं।
वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा।
बाद में वर्ष 2013 में कांग्रेस की मनमोहन सरकार ने इस बिल में संशोधन पेश किए गए, जिससे वक्फ को इससे संबंधित मामलों में असीमित और पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त हुई। वह किसी भी संपत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की संपत्ति है या नहीं. अगर बोर्ड किसी संपत्ति को अपना कहते हुए दावा कर दे तो इसके उलट साबित करना काफी मुश्किल हो जाता है. अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है। सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है। वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि इसके फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती, आपको वक्फ बोर्ड से ही गुहार लगानी होगी।
वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में करीब 8 लाख 55 हजार से ज्यादा संपत्तियां ऐसी हैं जो वक्फ की हैं, जिसमें हर साल इजाफा होता जा रहा है| सेना और रेलवे के बाद देश में संपत्ति के मामले में वक्फ तीसरा सबसे बड़ा भूमि मालिक है. अकेले यूपी में सुन्नी बोर्ड के पास कुल 2 लाख 10 हजार 239 संपत्तियां हैं, जबकि शिया बोर्ड के पास 15 हजार 386 संपत्तियां हैं.
यहाँ तक की कई मौके पर वक्फ बोर्ड द्वारा किए गए दावे काफी चर्चा और विवाद में घिरने लगे. तमिलनाडु में वहां के स्टेट वक्फ बोर्ड ने तिरुचिरापल्ल जिले के एक पूरे गांव पर ही मालिकाना हक जता दिया. महाराष्ट्र के सोलापुर में भी कुछ ऐसा केस आ चुका है. उत्तर प्रदेश में भी वक्फ बोर्ड ने बड़े पैमाने पर संपत्तियों पर दावा जताया था.हद तो तब हो गयी जब लालकिले पर भी दवा थोक दिया गया. यहाँ तक की अभी हाल ही में ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ को लेकर दवा ठोक दिया कि प्रयागराज के निवासी सरताज ने दावा किया है कि कुंभ के मेले की जहां तैयारियां की जा रही हैं वो जमीन वक्फ की है. ये जमीन लगभग 55 वीघा है.
वक्फ बोर्ड पर अक्सर भू-माफिया बोर्ड होने के आरोप भी लगते रहे हैं, जो अपने असीमित क़ानूनी अधिकारों का प्रयोग करके लोगों की जमीनों पर कब्ज़ा करता है. लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा बनाए गए कानूनों की वजह से शासन, प्रशासन और न्यायलय सबके हाथ बंधे हुए हैं.