शब्द (Word) :
निश्चित अर्थ प्रकट करने वाले वर्ण समूह को शब्द कहते हैं! शब्द भाषा की स्वतंत्र और अर्थवान इकाई है! शब्द और अर्थ में नित्य संबंध माना जाता है! वास्तव में शब्द सार्थक होते हैं और वर्णों के विशिष्ट क्रम से बनते हैं! वे वस्तु, विचार या भाव को अभिव्यक्त करते हैं! मतलब १. शब्द भाषा की स्वतंत्र इकाई है २. शब्द भाषा की सार्थक इकाई है! जैसे मकल कोई शब्द नहीं लेकिन कलम है!
शब्द भंडार :
किसी भी भाषा में प्रयुक्त शब्दों के समूह को उस भाषा का शब्द भंडार कहते हैं! किसी भी भाषा के शब्द भंडार की गणना करना संभव नहीं है! भाषा का शब्द भंडार कितना ही बड़ा क्यों न हो, फिर भी वह परिवर्तित होते रहता है! संस्कृति और सभ्यता में परिवर्तन के साथ साथ शब्द भंडार भी प्रभावित होता है! पुराने शब्द अप्रचलित हो जाते हैं और नए शब्द आ जाते हैं! जैसे – किलो, लीटर, कम्प्यूटर, आकाशवाणी शब्द नए आए हैं तथा मन, सेर, छटाँक आदि शब्द लगभग लुप्त हो रहे हैं!
शब्दों का वर्गीकरण (Classification of Words) :
शब्दों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है –
1. स्रोत या इतिहास के आधार पर 2. रचना के आधार पर 3. प्रयोग के आधार पर
4. व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर 5. अर्थ के आधार पर
स्रोत या इतिहास के आधार पर (According to Origin) :
स्रोत शब्द के तात्पर्य यह है की हमें पता होना चाहिए कि अमुक शब्द कहाँ से आया है; जैसे – दही शब्द संस्कृत के दधि से आया है! कंप्यूटर शब्द अंग्रेजी भाषा से आया है! हिंदी भाषी समुदाय को प्राकृत – अपभ्रंश से होते हुए संस्कृत शब्द परिवर्तित रूप में मिले हैं, जिन्हें तद्भव कहते हैं! इनके अतिरिक्त जनजाति के लोग जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, उन्हें हम देशी शब्द कहते हैं! मध्यकाल में मुगलों और अंग्रेजों के शासन के कारण अनेक विदेशी शब्द भी आ गए हैं! संस्कृत के शब्द तत्सम हैं! इन सब बातों को ध्यान में रखकर हम स्रोत या इतिहास के आधार पर शब्दों को पाँच वर्गों में बाँट सकते हैं –
१. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. आगत (विदेशी) ५. संकर
१. तत्सम शब्द (sanskrit words) : तत्सम शब्द का अर्थ है ‘उसके समान’ यानि संस्कृत के समान! संस्कृत के बहुत सारे शब्द संस्कृत से उसी रूप में ग्रहण कर लिए गए हैं जिस रूप में उनका प्रयोग संस्कृत में होता है, इसलिए इन्हें तत्सम शब्द कहते हैं; जैसे – पुष्प, भूमि, विद्वान, पृथ्वी, अहंकार, स्वप्न आदि!
२. तद्भव शब्द (Sanskrit based words, changed in Hindi) : तद्भव का अर्थ है ‘उससे उत्पन’! संस्कृत के वे शब्द जो पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिंदी से विकसित होते हुए हिंदी में परिवर्तित रूप में प्रचलित हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं – सप्त > सात, कर्म > काम, वर्ष > बरस, मातृ > माता, दुग्ध > दूध, क्षीर > खीर, पत्र > पत्ता, मयूर > मोर आदि!
पढ़ें : तत्सम शब्दों से विकसित तद्भव शब्दों की पूरी सूचि
३. देशी या देशज शब्द (Locally originated words) : जिन शब्दों के स्रोत अज्ञात हैं, उन्हें देशज शब्द कहते हैं! ये शब्द हिंदी की अपनी प्रकृति के अनुरूप ग्रामीण क्षेत्रों, बोली आदि के प्रभाव से विकसित हुए हैं! देशज शब्दों का मूल सामन्यतः जन भाषाओँ में होता है – पगड़ी, लोटा, सेठ, झोला, खाट, झाड़ू, झंझट, थप्पड़, ठोकर, भोंपू, अटकल, भोंदू आदि!
४. आगत या विदेशी शब्द (Foreign words) : आगत का अर्थ है ‘आया हुआ’! अर्थात् वे शब्द जो दूसरी (विदेशी) भाषाओँ से आए हैं, विदेशी या आगत शब्द कहलाते हैं! हिंदी में अरबी, फ़ारसी, तुर्की, चीनी, रुसी, जापानी, मलय, डच, अंग्रेजी, पुर्तगाली, फ़्रांसिसी आदि भाषाओँ से अनेक शब्द आ गए हैं और वे हिंदी के बन गए हैं – अमीर, आदमी, टेलीविज़न, गोदाम, मित्र, चाय, कुरता, मित्र, रिक्शा, खोपरा, तुरुप आदि!
५. संकर शब्द : दो भिन्न स्रोतों से आए शब्दों के मेल से बने नए शब्दों को संकर शब्द कहते हैं! हिंदी में ऐसे अनेक शब्द हैं, जो हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी, अरबी आदि शब्दों या शब्दांशो के मेल से बने हैं – वर्ष (संस्कृत) + गाँठ (हिंदी) = वर्षगाँठ!
रचना के आधार पर (According to construction) :
रचना के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं – १. मूल शब्द २. व्युत्पन्न शब्द
१. मूल शब्द – जो शब्द किसी दूसरे शब्द या शब्दांश के योग से न बने हों और अपने में पूर्ण हों, उन्हें मूल शब्द कहते हैं! इन्हें रूढ़ शब्द भी कहा जाता है! इन शब्दों के सार्थक खंड नहीं हो सकते – सेना, फूल, पत्ता, कुर्सी, दिन आदि!
२. व्युत्पन्न शब्द – दो शब्दों या शब्दांशों के योग से बने हुए शब्दों को व्युत्पन्न शब्द कहते हैं! व्युत्पन्न शब्द दो प्रकार के होते हैं –
(i) यौगिक शब्द (Combined words) : यौगिक का अर्थ है – ‘मेल से बना हुआ’! दो शब्दों या शब्दांशो के योग से बने शब्द को यौगिक कहते हैं! जैसे – सेना + पति = सेनापति, अनु + शासन = अनुशासन, चतुर + आई = चतुराई, प्रधान + आचार्य = प्रधानाचार्य आदि!
(ii) योगरूढ़ शब्द (Traditional combined words) : जिन यौगिक शब्दों का अर्थ किसी विशेष अर्थ को प्रकट करता है, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते हैं! योगरूढ़ शब्दों का परंपरा से किसी विशेष अर्थ के लिए ही प्रयोग किया जाता है – वीणापाणी शब्द वीणा + पाणी से मिलकर बना है, यहाँ इसका अर्थ हाथ में वीणा न होकर, जिसके हाथ में वीणा अर्थात् सरस्वती है! परंपरा से वीणापाणी शब्द सरस्वती के लिए प्रयुक्त होता है! – हिमालय, नीलकंठ, पीतांबर, चतुर्भुज, लंबोदर, एकदंत, दशानन, पवनपुत्र, महावीर आदि!
प्रयोग के आधार पर (Basis of usage ) :
प्रयोग की दृष्टि से शब्दों को तीन वर्गों में बाँटा गया है –
१. सामान्य शब्द (General words) : सामान्य शब्दावली में वे शब्द होते हैं जिनका संबंध आम जन जीवन से होता है! इन शब्दों का प्रयोग भाषा समुदाय के सदस्य अपने दैनिक व्यवहार में करते हैं – हाथ, पैर, सुबह, शाम, बाजार, दाल, भात आदि!
२. पारिभाषिक या तकनीकी शब्द (Technical words) : ऐसे शब्द जो ज्ञान विज्ञान या विभिन्न व्यवसाय क्षेत्रों में विशिष्ट अर्थों में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तकनीकी शब्द कहते हैं; जैसे – संज्ञा, घर्षण, घनत्व, जीवमंडल, उत्पाद, अधीक्षक, कार्यकारी आदि!
३. अर्धतकनीकी शब्द (Semi Technical words) : इसके अंतर्गत वे शब्द आते हैं जिन्हें सामान्य व्यक्ति भी प्रयुक्त करते हैं और विशेषज्ञ भी! अंतर केवल इतना होता है कि विशेषज्ञ का अर्थ परिभाषित होता है! जबकि सामान्य व्यक्ति का अर्थ शिथिल होता है! जैसे – बल- आम आदमी के लिए बल है तो प्रशासन के लिए फ़ोर्स है!
व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर (According to Grammatical) :
व्याकरणिक दृष्टि से शब्दों को उनके प्रकार्य के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जाता है –
१. विकारी (Declinable) : विकारी शब्द वे होते हैं जिनमें लिंग, वचन, कारक, काल, पक्ष के कारण परिवर्तन होता है! संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया विकारी शब्द है – लड़का-लड़के, मैं-मेरा, अच्छा-अच्छी आदि!
२. अविकारी (Indeclinable) : ऐसे शब्द जिनके मूल रूप में परिवर्तन या विकार नहीं होता, उन्हें अविकारी कहते हैं! अविकारी शब्द हैं – क्रिया विशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक और निपात! इन्हें अव्यय भी कहते हैं! जैसे – आज, यहाँ, अथवा, और, अरे, तक, आदि!
अर्थ के आधार पर (According to Meaning) :
शब्द भाषा की लघुतम इकाई है! प्रत्येक शब्द का अपना एक अर्थ होता है, जिसे मुख्यार्थ कहते हैं! अर्थ के आधार पर शब्दों के पाँच भेद होते हैं –
१. पर्यायवाची शब्द (Synonyms) : जिन शब्दों के अर्थों में समानता होती है, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं! पर्यायवाची शब्दों के अर्थों में समानता होने पर भी प्रत्येक पर्यायवाची शब्द का विशेष अर्थ होता है! जैसे – अंक -गोद, आलिंगन, संख्या, नाटक का अंक!
२. विपरीतार्थक या विलोम शब्द (Antonyms) : एक दुसरे का उल्टा अर्थ देने वाले शब्दों को विलोम शब्द कहते हैं, जैसे – अंधेरा – उजाला, अमृत – विष आदि!
३. एकार्थी शब्द (words with one meaning) : ऐसे शब्द जिनका एक ही अर्थ होता है, उन्हें एकार्थी शब्द कहते हैं! जैसे – अटूट – न टूटने वाला! आपदा – मुसीबत! आदि!
४. अनेकार्थी शब्द (words with different meanings) : जो शब्द एक से अधिक अर्थ देते हैं, उन्हें अनेकार्थी शब्द कहते हैं! जैसे – अंक – चिह्न, गोद, अध्याय, संख्या! अज – ब्रह्मा, बकरा, शिव! आदि!
५. श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द (pairs of words, distinguished) : कुछ शब्दों के उच्चारण में लगभग समानता लगती है, वस्तुतः ये भिन्न भिन्न होते हैं! इनके अर्थों में भिन्नता होती है! ऐसे शब्द श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द कहलाते हैं, जैसे – अंस – कंधा, अंश – भाग!
६. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (one word substitution) : हिंदी में अनेक शब्दों / पदबंधों या वाक्यांशों के लिए एक शब्द का प्रयोग किया जाता है, इससे लेखन में संक्षिप्तता आती है और लेख सुगठित हो जाता है! जैसे – जिसका आदि न हो – अनादि!
अन्य शब्द :
युग्म शब्द एक प्रकार का पुनरुक्त शब्द है! इसमें एक ही शब्द दो बार प्रयुक्त होता है! इसे द्विरुक्त शब्द भी कहते हैं! इसमें अर्थ में अतिशयता, भिन्नता, निरंतरता का बोध होता है! जैसे – घड़ी-घड़ी, देश-देश, बूँद-बूँद आदि!संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, क्रिया विशेषण आदि शब्दों से पुनरुक्त शब्द का निर्माण होता है!
कुछ अनुकरणात्मक अथवा निरर्थक शब्दों से भी नए सार्थक शब्द बनते हैं – खटखट, गड़गड़, हिनहिनाना, दनादन आदि!
कभी – कभी पुनरुक्त शब्द के बिच में ‘न’ ‘ही’ ‘तो’ आदि निपात अथवा कोई परसर्ग आने से नए अर्थ का बोध होता है – कोई-न-कोई, रंग-ही-रंग, घर-का-घर आदि! कुछ ऐसे शब्द हो जो ऊपर वर्णित किसी भेदों में नहीं आते उन्हें निम्नलिखित भेदों में बाँटते हैं –
वर्णात्मक शब्द (Descriptional words) : ये वे शब्द हैं, जिनके अर्थ वर्णन या व्याख्या से ही स्पष्ट हो पाते हैं! इनको स्पष्ट करने के लिए एक पूरे उपवाक्य की आवश्यकता है – अतिथि, अजातशत्रु आदि! व्याकरण में ऐसे शब्दों के लिए ‘अनेक शब्दों के लिए एक शब्द‘ संज्ञा का प्रयोग किया गया! ये शब्द प्रायः तत्सम ही होते हैः!
अवधारणात्मक शब्द (Conceptional words) : इन शब्दों को अकेले रहकर कोई स्पष्ट अर्थ नहीं होता, ये वाक्य में प्रयोग होकर ही संदर्भ के अनुसार किसी न किसी अवधारणा को व्यक्त करते हैं – ठांय-ठांय, काँव, चकचक, कानों-कान आदि! in शब्दों की व्युत्पति के संबंध में बता पाना कठिन है, शायद ये शब्द ध्वन्यात्मक अनुकृति के कारण बने हैं!
अनुकरणात्मक शब्द – मिलती जुलती आवाजों के लिए हर भाषा में कुछ शब्द मिलते हैं – इन शब्दों की ध्वन्यात्मक संरचना को सुना जा सकता है – ठांय, धांय, ठस्स, सन्न, फटाक, खटाक आदि!
रणन शब्द – रणन से अभिप्राय है – पशु पक्षियों की आवाजें – रंभाना, मिमियाना, दहाड़ना, चिंघाड़ना आदि!
पुनरुक्त / द्वित्व शब्द – ये तीन प्रकार के होते हैं –
(i) पूर्ण द्वित्व – इसमें पहला घटक सार्थक होता है दूसरा उसी की पुनरावृति होती है – काले-काले, पीले-पीले, कौन-कौन आदि!
(ii) अपूर्ण द्वित्व – इसमें पहली इकाई सार्थक होती है, दूसरी इकाई पहली इकाई से व्युत्पन्न करके बनाई जाती है – दे-दिलाकर, पोंछ-पांछ्कर, धो-धाकर आदि!
(iii) प्रतिध्वन्यात्मक द्वित्व – इसमें दूसरा शब्द पहले शब्द की ही प्रतिध्वनि होता है – चाय-वाय, खाना-वाना, मकान-वकान आदि!
Next Topic : हिंदी व्याकरण में पद व्यवस्था
उम्मीद है ये उपयोगी पोस्ट आपको जरुर पसंद आया होगा! पोस्ट को पढ़ें और शेयर करें (पढाएं) तथा अपने विचार, प्रतिक्रिया, शिकायत या सुझाव से नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमें अवश्य अवगत कराएं! आप हमसे हमसे ट्विटर और फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं!