भारत की संघीय कार्यपालिका एवं उसकी संरचना

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राष्ट्रपति : भारतीय संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है! भारत में संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया है! अतः राष्ट्रपति नाम मात्र की कार्यपालिका है तथा प्रधानमंत्री उसका मंत्रिमंडल वास्तविक कार्यपालिका है! राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रधान होता है! राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है!

 

उपराष्ट्रपति : संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा! इस प्रावधान को अमेरिका से लिया गया है! भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है! उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सदस्य नहीं होता है, अतः इसे मतदान का अधिकार नहीं है, किंतु सभापति के रूप में निर्णायक मत देने का अधिकार उसे प्राप्त है!

 

प्रधानमंत्री एवं मंत्रिमंडल : संविधान के अनुच्छेद 74 के अनुसार राष्ट्रपति को उसके कार्यों के संपादन व सलाह देने हेतु एक मंत्री परिषद होती है, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होता है! संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा! मंत्री तीन प्रकार के होते हैं : कैबिनेट मंत्री, राज्यमंत्री, उपमंत्री! मंत्रीपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है! यदि लोकसभा किसी एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करे अथवा उस विभाग से संबंधित विधेयक को रद्द कर दे, तो समस्त मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना होता है!

 

संघीय संसद : भारत की संसद राष्ट्रपति, राज्यसभा तथा लोकसभा से मिलकर बनती है! संसद के निम्न सदन को लोकसभा एवं उच्च सदन को राज्यसभा कहते हैं! राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है! वर्तमान में यह संख्या 245 है, इनमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं! शेष 233 सदस्य संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं! लोकसभा एवं राज्यसभा के अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा ही बुलाए और स्थगित किए जाते हैं! लोकसभा की दो बैठकों में 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए!

 

संविधान के अनुच्छेद 108 में संसद के संयुक्त अधिवेशन की व्यवस्था है! संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा की जाती है! संयुक्त अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा निम्न तीन स्थितियों में बुलाया जा सकता है – (i) दुसरे सदन द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया गया हो, (ii) विधेयक पर किये जानेवाले संशोधनों के बारे में दोनों सदन अंतिम रूप से असहमत हो गए हैं, (iii) दुसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना 6 मास से अधिक बीत गए हों! संविधान संशोधन विधेयक पर संयुक्त अधिवेशन की व्यवस्था नहीं है, संविधान संशोधन विधेयक दोनों सदनों में अलग अलग पारित होना चाहिए!

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धन विधेयक के संबंध में लोकसभा का निर्णय अंतिम होता है! लोकसभा अध्यक्ष द्वारा धन विधेयक के रूप में प्रमाणित विधेयक की प्रकृति के प्रश्न पर न्यायालय में या किसी सदन में या राष्ट्रपति द्वारा विचार नहीं किया जाएगा! संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा स्वयं ही अपने सदस्यों में से एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष का निर्वाचन करेगी! लोकसभा में विपक्ष के नेता को कैबिनेट स्तर के मंत्री के समान समस्त सुविधा प्राप्त होती है!

 

लोकसभा में अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, और उपाध्यक्ष की भी अनुपस्थिति में राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए वरिष्ठ सदस्यों का पैनल में से कोई व्यक्ति पीठासीन होता है! इस पैनल में आमतौर पर 6 सदस्य होते हैं! सदन के सदस्यों के प्रश्नों को स्वीकार करना, उन्हें नियमित करना व नियम के विरुद्ध घोषित करना लोकसभा अध्यक्ष के कार्यक्षेत्र में आता है! एक समय में एक व्यक्ति केवल एक ही सदन का सदस्य रह सकता है! संसद सदयों को संसद की बैठक के पूर्व या बाद के 40 दिन की अवधि के दौरान गिरफ़्तारी से मुक्ति प्रदान की गई है! गिरफ़्तारी से यह मुक्ति केवल सिविल मामलों में है! आपराधिक मामले अर्थात निवारक निरोध की विधि के अधीन गिरफ़्तारी से छुट नहीं है!

 

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