संज्ञा किसे कहते हैं, संज्ञा के भेद, संज्ञा के विकार, वचन, कारक और लिंग

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संज्ञा ( Sangya ) वे शब्द हैं, जो किसी व्यक्ति, प्राणी, वस्तु, स्थान, विचार या भाव आदि का बोध कराते हैं! जैसे – राकेश, गंगा, गाय, सेब गरीबी आदि! निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर संज्ञा पदों को पहचाना जा सकता है –

१. कुछ संज्ञा पद प्राणिवाचक होते हैं और कुछ अप्राणिवाचक! प्राणिवाचक हैं – बच्चा, भैंस, चिड़िया, राकेश आदि! अप्राणिवाचक हैं – किताब, मकान, रेलगाड़ी, पर्वत आदि!

२. कुछ संज्ञा शब्दों की गिनती की जा सकती है और कुछ की गिनती नहीं की जा सकती; जैसे – आदमी, पुस्तक आदि की गणना की जा सकती है, इसलिए ये गणनीय संज्ञाएँ हैं! दूध, हवा, प्रेम की गणना नहीं की जा सकती, इसलिए ये अगणनीय संज्ञाएँ हैं!

३. संज्ञा पद के बाद परसर्ग (ने, को, से, के लिए, में, पर आदि) आ सकते हैं; जैसे – राम ने, मोहन को, लकड़ी के लिए, ऊंचाई पर!

४. संज्ञा ( Sangya ) पद से पूर्व विशेषण का प्रयोग हो सकता है; जैसे – छोटी कुर्सी, काला घोड़ा, अच्छा लड़का आदि! परसर्ग या विशेषण न होने पर भी संज्ञा पद किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या भाव के नाम के कारण पहचाना जा सकता है; जैसे – मोहन जाता है!

 

संज्ञा के कार्य (Functions of Noun) – वाक्य में संज्ञा पद कर्ता, कर्म, पूरक, करण, अपादान, अधिकरण आदि कई प्रकार की भूमिकाएँ निभाता है; जैसे – चित्रिशा खेल रही है! वह पुस्तक पढ़ रहा है! रमेश विद्यार्थी है, आदि!

 

संज्ञा के भेद (Sangya Ke bhed : Kinds of Noun) –

मुख्य रूप से संज्ञा के तीन भेद माने जाते हैं –

१. व्यक्तिवाचक संज्ञा  २. जातिवाचक संज्ञा  ३. भाववाचक संज्ञा

लेकिन बाद में संज्ञा के दो और भेद भी माने जाने लगे – ४. द्रव्यवाचक संज्ञा  ५. समुदायवाचक संज्ञा

 

व्यक्तिवाचक संज्ञा (Proper Noun) – जिस संज्ञा पद से किसी विशेष व्यक्ति, स्थान या वस्तु के नाम का बोध हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं! जैसे – रवि, कामधेनु, गंगा, हिमालय, भारत आदि!

जातिवाचक संज्ञा (Common Noun) – जिस संज्ञा पद से किसी जाति या वर्ग के सभी प्राणियों, वस्तुओं या स्थानों का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – आदमी, गाय, शहर, मेज, नदी, पहाड़ आदि!

भाववाचक संज्ञा (Abstract Noun) – जिन संज्ञा शब्द से प्राणियों, मनुष्यों और वस्तुओं के गुण, दोष, स्वभाव, अवस्था, स्थिति, कार्य, भाव और दशा आदि का ज्ञान होता है, उन्हें भाववाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – मानवता, राष्ट्रीयता, बचपन, चोरी, ममता, सहायता, मुस्कान आदि!

द्रव्यवाचक संज्ञा (Material Noun) -किसी पदार्थ या द्रव्य का बोध कराने वाले शब्दों को द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं; जैसे – सोना, चाँदी, लकड़ी, चावल, अन्न, तेल आदि!

समुदायवाचक/समूहवाचक संज्ञा (Collective Noun) – बहुत से शब्द किसी एक व्यक्ति के वाचक न होकर समूह के वाचक होते हैं! इनमें उनके समूह का ज्ञान होता है! जैसे – सेना, पुलिस, कक्षा, परिवार, सभा आदि! ये शब्द सजातीय प्राणियों/वस्तुओं के समूह को एक इकाई के रूप में प्रकट करते हैं, अतः ये एकवचन होते हैं!

 

संज्ञा के भेदों का परिवर्तन – व्यक्तिवाचक, जातिवाचक और भाववाचक संज्ञाएँ कई बार एक दुसरे के स्थान पर प्रयुक्त हो जाती है! जैसे – देश को हानि जयचंदों से होती है! जयचंद व्यक्तिवाचक संज्ञा है, लेकिन यहाँ जातिवाचक के रूप में इस्तेमाल किया गया है! लौहपुरुष के दृढ संकल्प ने भारत को एकरूपता प्रदान की, आदि!

 

संज्ञा के विकार (Sangya Ke Vikar : Declension of Noun) –

संज्ञा एक विकारी पद है! इसका प्रयोग करते समय इसके रूपों में लिंग, वचन और कारक के कारण विकार या परिवर्तन आ जाता है!

 

लिंग किसे कहते हैं, लिंग की पहचान और लिंग परिवर्तन के नियम :

लिंग ( Ling : Gender ) – लिंग का अर्थ है -‘चिह्न’! हिंदी में लिंग का व्याकरणिक महत्व है, क्योंकि इसके कारण शब्द का रूप बदलता है; जैसे -लड़का दौड़ता है! लड़की दौड़ती है! इस प्रकार लिंग संज्ञा का वह लक्षण है जो संज्ञा के पुरुषवाची या स्त्रीवाची होने का बोध कराता है! हिंदी में लिंग ( Ling ) के दो भेद हैं – (i) पुल्लिंग  (ii) स्त्रीलिंग

जीव जगत में लिंग का भेद प्राकृतिक है, किंतु भाषा में इसे व्याकरण की दृष्टि से देखना अपेक्षित है! प्राणिवाचक संज्ञा शब्दों में लिंग की पहचान उसके नर या मादा होने के कारण सरलता से हो जाती है, किंतु अप्राणिवाचक संज्ञा शब्दों में लिंग की पहचान उसके साथ लगने वाली क्रिया और विशेषण पद से ही हो सकती है! जैसे –

आदमी भोजन कर रहा है (प्राकृतिक लिंग भेद)

औरत खाना बना रही है (प्राकृतिक लिंग भेद)

कूलर चल रहा है (क्रिया से पहचान)

बिजली जल रही है (क्रिया से पहचान)

यह बड़ा कमरा है (विशेषण से पहचान)

(i) पुल्लिंग (Masculine Gender) – ऐसे शब्द जिनसे पुरुष जाति का बोध होता है, उन्हें पुल्लिंग कहते हैं! जैसे – केला, दुकानदार, स्कूटर, बस्ता, अधयापक, वायुयान, टेलीविजन, लड़का आदि!

(ii) स्त्रीलिंग (Feminine Gender) – वे शब्द जिनसे स्त्री जाती का बोध होता है, उन्हें स्त्रीलिंग कहते हैं; जैसे – पुस्तक, साड़ी, कमीज, दीवार, गली, पतंग, बंदूक, फुलवारी आदि!

 

लिंग की पहचान ( Ling Ki Pahchan : Identification of Gender ) –

प्राणिवाचक संज्ञाओं के लिंग की पहचान – प्राणिवाचक संज्ञाओं के लिंग की पहचान उनकी शारीरिक संरचना से हो जाती है! जैसे – लड़का, युवक, वृद्ध, शेर, चीता, घोड़ा, गधा, सांड, बंदर – इनकी शारीरिक संरचना से इनके पुल्लिंग होने का पता चलता है! चिड़िया, गधी, गाय, स्त्री, लड़की, बूढी, बंदरिया, हथिनी – इनकी शारीरिक संरचना से इनके स्त्रीलिंग होने का पता चलता है!

सदा पुल्लिंग रहने वाले शब्द – कौआ, गीदड़, उल्लू, बगुला, जिराफ, गैंडा, मच्छर, लंगूर, खरगोश आदि!

सदा स्त्रीलिंग रहने वाले शब्द – कोयल, गिलहरी, भेड़, चमगादड़, मक्खी, मैना, मछली आदि!

पदनाम सदैव पुलिंग में होते हैं, चाहे उन पदों पर बैठा व्यक्ति पुरुष हो या स्त्री!

ये शब्द उभयलिंगी हो गए हैं, इनके लिंग क्रिया द्वारा ही निर्धारित होते हैं – राजदूत, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, कुलपति, राष्ट्रपति, इंजिनियर, प्रोड्यूसर, फोटोग्राफर, रिपोर्टर, डॉक्टर, प्रोफेसर, सचिव, सभापति आदि!

नर या मादा लगाकर लिंग का निर्धारण – कुछ संज्ञा शब्दों में लिंग में भेद करने के लिए उनसे पहले नर या मादा शब्द लगा देते हैं! जैसे – नर मछली, नर कोयल, नर गिलहरी, मादा उल्लू, मादा बगुला आदि!

 

अप्राणिवाचक संज्ञाओं के लिंग की पहचान – अप्राणिवाचक संज्ञाओं के लिंग के विषय में निश्चित नियम नहीं है! इनका प्रयोग परंपरा से जिस लिंग के अनुसार होता चला आ रहा है, वही मान्य है! अप्राणिवाचक संज्ञा शब्दों के परंपरानुसार कुछ नियम प्रचलित है!

 

सदा पुल्लिंग ( Pulling ) रहने वाले शब्द –

  1. दिनों के नाम – सोमवार, मंगलवार, बुधवार आदि!
  2. महीनों के नाम – चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आदि!
  3. समयसूचक नाम – पहर, पल, क्षण, सेकंड, मिनट, घंटा, दिन, महिना, वर्ष आदि!
  4. फलों के नाम – केला, संतरा, आम, तरबूज, जामुन आदि (लीची, खजूर -स्त्रीलिंग)
  5. तरल पदार्थों के नाम – पानी, तेल, पेट्रोल, दूध आदि (लस्सी, ठंडाई – स्त्रीलिंग)
  6. रत्न और धातुओं के नाम – मूंगा, पुखराज, मोगध, हीरा, लोहा, पीतल आदि (चाँदी-स्त्रीलिंग)
  7. अनाजों के नाम – चावल, गेहूँ, बाजरा, मक्का, चना आदि!
  8. वृक्षों के नाम – अशोक, आम, जामुन, बेर, अमरुद आदि (इमली – स्त्रीलिंग)
  9. देशों के नाम – वियतनाम, मलेशिया, ईरान, नेपाल, मॉरिशस आदि!
  10. पर्वतों के नाम – अरावली, हिमालय, आल्प्स, शिवालिक, हिमालय विंध्य आदि!
  11. समुदों के नाम – हिंद महासागर, अरब सागर, प्रशांत महासागर आदि!
  12. ग्रहों के नाम – मंगल, राहु, बुध, शनि आदि (पृथ्वी – स्त्रीलिंग)
  13. जल के स्थानों के नाम – तालाब, कुआँ, नलकूप, झरना, समुद्र आदि! (नदी, नहर, झील – स्त्रीलिंग)
  14. स्थानों के नाम – मोहल्ला, टोला, गाँव, बाजार, शहर, प्रांत, राज्य, देश आदि! (गली – स्त्रीलिंग)
  15. वर्ण – इ, ई, ऋ, ए, ऐ के अतिरिक्त शेष सभी वर्ण पुल्लिंग!
  16. शरीर के अंगों के नाम – सिर, माथा, नाक, कान, गाल, मुंह, दांत, कंधा आदि!
  17. जिन अप्राणिवाचक संज्ञाओं के अंत में पन, वाला, त्व, त्र, आय, आस, आप, ऐरा, आ, आवा और दान आते हैं; जैसे – चायवाला, नटखटपन, अमरत्व, नेत्र, अध्याय लुटेरा आदि!
  18. अंत में ‘अ’ आने वाले शब्द प्रायः पुल्लिंग होते हैं; जैसे – नयन, पवन, कमल, फूल, भाषण, बचपन आदि!

 

सदा स्त्रीलिंग ( Striling ) रहने वाले शब्द :

  1. बोलियों के नाम – अंगिका, राजस्थानी, मंडियाली, भोजपुरी, मगही आदि!
  2. भाषाओँ के नाम – हिंदी, संस्कृत, मराठी, पंजाबी, नेपाली, फ्रेंच, अंग्रेजी, फारसी आदि!
  3. लिपियों के नाम – देवनागरी, गुरुमुखी, अरबी, रोमन आदि!
  4. झीलों के नाम – नैनी, डल, मानसरोवर आदि!
  5. नदियों के नाम – सतलुज, रावी, ब्यास, यमुना, गंगा, गोदावरी आदि (ब्रह्मपुत्र – पुल्लिंग)
  6. आहारों के नाम – खिचड़ी, रोटी, चपाती, दाल, कढ़ी, कचौड़ी, इडली आदि!
  7. किराने की वस्तुएँ – चीनी, इलायची, अरहर, मूँग, सौंफ, मिर्च आदि!
  8. शरीर के अंगों के नाम – आँख, नाक, थोड़ी, गर्दन, छाती, जाँघ, बाँह, उँगलियाँ टाँग आदि!
  9. बर्तनों के नाम – थाली, कटोरी, चम्मच, प्लेट, कढ़ाई आदि!
  10. महीनों के नाम – जनवरी, फरवरी, मई, जुलाई!
  11. आभूषणों के नाम – माला, अँगूठी, चूड़ी, कंठी, बाली आदि!
  12. अंत में आहट, आवट, आई, आस, ता आने वाली भाववाचक संज्ञाएँ – घबराहट, बुलाहट, गरमाहट, मिलावट, पढाई, कमाई, मिठास, प्यास, ममता, प्रभुता आदि!
  13. अंत में ‘आ, इ, इमा, उ, ति, नि आने वाले संस्कृत शब्द – लज्जा, दया, कृपा, बुद्धि, गति, कालिमा, तनु, रेणु आदि!
  14. अंत में ‘अ, ई, ऊ, ख, त आने वाली संज्ञाएँ; जैसे – बात, रात, लात, चमक, जीवन, खेल, चीख, भीख, ईख, राख, झाड़ू, लू, बाल आदि!

 

लिंग परिवर्तन – प्रायः पुल्लिंग शब्दों के साथ प्रत्यय लगाने से स्त्रीलिंग शब्द बन जाते हैं! कुछ शब्द सदा स्त्रीलिंग या पुल्लिंग ही रहते हैं, इनके आगे नर या मादा लगाकर उनके पुल्लिंग या स्त्रीलिंग बना लिए जाते हैं! पुल्लिंग से स्त्रीलिंग बनाने के नियम –

  1. पुल्लिंग शब्दों के अंत में आए ‘अ’ और ‘आ’ के स्थान पर ‘ई’ लगाकर – कबूतर – कबूतरी, ब्राह्मण-ब्राह्मणी, गधा-गधी!
  2. अंत में आए ‘अ’ और ‘आ’ के स्थान पर ‘इया’ लगाकर – चूहा – चुहिया, खाट – खटिया!
  3. पुल्लिंग शब्दों के अंत में आए ‘अ’ और ‘आ’ के स्थान पर ‘ई’ लगाकर – मोह्याल – मोहयालिन, लुहार – लुहारिन!
  4. अंत में आए ‘अ’ ‘आ’ और ‘ई’ के स्थान पर ‘इन लगाकर – लाला – ललाइन, चौबे – चौबाइन आदि!
  5. अंत में ‘नी’ लगाकर – जाट – जाटनी, मोर – मोरनी, भाट – भाटनी आदि!
  6. अंत में ‘आ’ लगाकर – अध्यक्ष – अध्यक्षा, अनुज – अनुजा आदि!
  7. अंत में आनी लगाकर – चौधरी – चौधरानी, मेहतर – मेहतरानी आदि!
  8. अंत में आए ‘अक’ के स्थान पर ‘इका’ लगाकर – लेखक – लेखिका, पाठक – पाठिका आदि!
  9. अंत में आए ‘मान’ और ‘वान’ के स्थान पर ‘मती’ और ‘वती’ लगाकर – सत्यवान – सत्यवती, श्रीमान – श्रीमति!
  10. अंत में आए ‘अ’ और ‘ई’ के स्थान पर ‘इनी’ और ‘इणी’ लगाकर – यशस्वी – यशस्विनी, सर्प – सर्पिणी!
  11. अंत में आए ‘ता’ के स्थान पर ‘त्र’ लगाकर – दाता – दात्री, विधाता – विधात्री आदि!
  12. सदा पुल्लिंग रहने वाले शब्दों से पहले ‘मादा’ लगाकर – खरगोश – मादा खरगोश, उल्लू – मादा उल्लू!
  13. सदा स्त्रीलिंग रहने वाले शब्दों से पहले ‘नर’ लगाकर – लोमड़ी – नर लोमड़ी, मक्खी – नर मक्खी!
  14. भिन्न रूप वाले पुल्लिंग-स्त्रीलिंग शब्द लगाकर – राजा – रानी, पति – पत्नी, साधु – साध्वी, सम्राट – सम्राज्ञी, विद्वान् – विदुषी, बादशाह – बेगम, विधुर – विधवा, विलाव – बिल्ली आदि!

 

वचन क्या है, वचन के भेद और वचन परिवर्तन :

वचन ( Vachan ) संज्ञा पदों का वह लक्षण है जो एक या अधिक का बोध कराता है; जैसे – घोड़ा – घोड़े, पुस्तक – पुस्तकें आदि! इन वाक्यों को ध्यान से देखें – १. लड़का जाता है!   २. लड़के जाते हैं! इसमें लड़का एक होने का बोध कराता है, जबकि लड़के का प्रयोग बहुवचन में हुआ है!

 

वचन के भेद (Vachan Ke Prakar : Kinds of Number) – वचन के दो भेद होते हैं – १. एकवचन (Singular)  २. बहुवचन (Plural)

१. एकवचन – ऐसे शब्द जिनसे एक संख्या का बोध होता है, उन्हें एकवचन कहते हैं; जैसे – पेड़, सड़क, दीवार, गमला आदि!

२. बहुवचन – ऐसे शब्द जिनसे एक से अधिक संख्याओं का बोध होता है, उन्हें बहुवचन कहते हैं; जैसे – चिड़ियाँ, साइकिलें, मोहल्ले, बच्चे आदि!

 

वचन ( Vachan ) की पहचान – वचन को दो तरह से पहचाना जाता है; (i) संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण द्वारा  (ii) क्रिया द्वारा

(i) संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण द्वारा वचन की पहचान – वाक्य में संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण का प्रयोग जिस वचन में होता है, उससे वचन की पहचान होती है, जैसे – युवतियाँ झुला झूलती है! थोड़े बच्चे शोर मचा रहे हैं!

(ii) क्रिया द्वारा वचन की पहचान – कुछ वाक्यों में वचन की पहचान क्रिया द्वारा होता है, ऐसा तब होता है जब वचन की पहचान संज्ञा आदि से नहीं हो पाती; जैसे – अधयापक पढ़ा रहा है! अधयापक पढ़ा रहे हैं!

 

सदा एकवचन रहने वाले शब्द – कुछ संज्ञा शब्द सदा एकवचन रहते हैं! इनका प्रयोग सदा एकवचन के रूप में होते हैं; जैसे – भीड़, जनता, आकाश, सोना, दूध, घी, मक्खन, पानी, वर्षा आदि!

 

सदा वहुवचन रहने वाले शब्द – कुछ संज्ञा शब्द सदा बहुवचन रहते है! इनका प्रयोग सदा बहुवचन के रूप में होता है; जैसे – होश, प्राण, आंसू, हस्ताक्षर, दर्शन, बाल, लोग आदि!

 

एकवचन शब्दों का बहुवचन के रूप में प्रयोग – कई बार एकवचन शब्दों का प्रयोग बहुवचन के रूप में किया जाता है!

आदर सम्मान प्रकट करने के लिए एक व्यक्ति के लिए भी बहुवचन का प्रयोग होता है; जैसे – स्वामी कृपाशंकर समय पर पहुँच गए!

अभिमान प्रकट करने के लिए बहुवचन का प्रयोग किया जाता है; जैसे – हमारी तो बात तो ही कुछ और है! इसमें मेरी की जगह पर हमारी का प्रयोग हुआ है अभिमान प्रकट करने के लिए!

 

वचन परिवर्तन (Change of Numbers) –

  1. स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में आए ‘अ’ का ‘एँ’ होना – राह -रहें, बोतल – बोतलें, बाँह – बाँहें आदि!
  2. स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में आए ‘आ’ के साथ ‘एँ’ जोड़कर – लता – लताएँ, गाथा – गाथाएँ, बाला – बालाएँ आदि!
  3. पुल्लिंग शब्दों के अंत में आए ‘आ’ के स्थान पर ‘ए’ लगाकर – बच्चा – बच्चे, पपीता – पपीते, लड़का – लड़के आदि!
  4. स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में आए ‘इ’ , ‘ई’ के स्थान पर ‘इयाँ’ लगाकर – चपाती – चपातियाँ, नारी – नारियाँ आदि!
  5. स्त्रीलिंग शब्दों के अंत में आए ‘या’ के स्थान पर ‘याँ’ लगाकर – बुढ़िया – बुढ़ियाँ, लुटिया – लुटियाँ आदि!
  6. संज्ञा शब्दों के अंत में आए ‘अ’ के स्थान पर ‘ओं’ लगाकर – गिटार – गिटारों, अख़बार – अख़बारों आदि!
  7. संज्ञा शब्दों के अंत में आए ‘आ’ के साथ ‘ओं’ लगाकर – कविता – कविताओं, माता – माताओं आदि!
  8. संज्ञा शब्दों के अंत में आए ‘ऊ’ को ‘उ’ में बदलकर और ‘ओं’ लगाकर – पढ़ाकू – पढ़ाकुओ, लड्डू – लड्डुओं आदि!

 

कारक किसे कहते हैं, कारक के भेद और संज्ञा का रूपांतरण :

किसी वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा या सर्वनाम पदों का उस वाक्य की क्रिया से जो संबंध होता है, उसे कारक ( Karak ) कहते हैं! संज्ञाओं का क्रिया से संबंध बताने के लिए कुछ चिह्नों; जैसे – ने, को, से, के लिए, में आदि का प्रयोग हुआ है, इन्हें परसर्ग (कारक-चिह्न) या विभक्ति चिह्न भी कहा जाता है!

 

कभी कभी कुछ वाक्यों में कुछ शब्दों के साथ परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है; जैसे – मनोज दूध पीता है! इसमें मनोज और दूध के बाद किसी परसर्ग का प्रयोग नहीं हुआ है! ऐसे वाक्यों में शब्द क्रम या अर्थ के आधार पर क्रिया से संज्ञा का संबंध स्पष्ट होता है!

 

कारक के भेद (Karak Ke Prakar : Kinds of Case) – कारक के छः भेद माने जाते हैं –

  1. कर्ता  – क्रिया को करने वाला! विभक्ति चिह्न – ने, शून्य!
  2. कर्म – जिस पर क्रिया का प्रभाव या फल पड़े! विभक्ति चिह्न – को!
  3. करण – जिस साधन से क्रिया हो! विभक्ति चिह्न – से, द्वारा!
  4. संप्रदान – जिसके लिए क्रिया की जाए! विभक्ति चिह्न – को, के लिए!
  5. अपादान – जिससे अलग होने या निकलने का बोध हो! विभक्ति चिह्न – से (अलग होना)!
  6. अधिकरण – क्रिया के स्थान, समय आदि का आधार! विभक्ति चिह्न – में, पर!

लेकिन कारक के दो अन्य भेद भी माने जाते हैं, किंतु इन पर विवाद है, क्योंकि इनका प्रत्यक्ष संबंध क्रिया से नहीं होता!

7. संबंध – क्रिया से भिन्न किसी अन्य पद से संबंध सूचित करने वाला! विभक्ति चिह्न – का, के, की!

8. संबोधन – जिस संज्ञा को पुकारा जाए! विभक्ति चिह्न – हे, अरे आदि!

 

१. कर्ता कारक (Nominative Case) – जो क्रिया करता है उसे कर्ता कारक कहते है! कर्ता संज्ञा या सर्वनाम होते हैं! इसकी विभक्ति ‘ने’ है! जब क्रिया अकर्मक होती है तो उसके साथ विभक्ति चिह्न नहीं लगता! ‘ने’ विभक्ति चिह्न सकर्मक क्रिया के भूतकाल में लगता है! जैसे – मोहन ने गुब्बारे ख़रीदे! रश्मि ने खाना खाया! कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्ता के साथ ‘से’ विभक्ति चिह्न लगता है – रमेश से पत्र नहीं लिखा जाता!

 

२. कर्मकारक (Objective Case) – वाक्य में जब क्रिया का फल कर्ता पर न पड़कर किसी अन्य संज्ञा या सर्वनाम पर पड़ता है, उसे कर्मकारक कहते हैं! इसका विभक्ति चिह्न ‘को’ होता है! यह विभक्ति चिह्न क्रियाओं के साथ ही लगता है! ‘को’ का प्रमुखतः प्रयोग प्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ किया जाता है! जैसे – किरण ने सिमरन को पहुँचाया! कई बार अप्राणिवाचक कर्म के साथ ‘को’ विभक्ति चिन्ह आता है; जैसे – दरवाजे को बंद कर दो! यदि किसी वाक्य में दो कर्म आए तो ‘को विभक्ति चिह्न का प्रयोग गौण कर्म के साथ होता है; जैसे – रमेश ने सुरेश को थप्पड़ मारा!

 

३. करण कारक (Instrumental Case) – संज्ञा या सर्वनाम के जो रूप क्रिया होने के साधन या माध्यम होते हैं उन्हें करण कारक कहते हैं! इसकी विभक्ति चिह्न ‘ से, के द्वारा, द्वारा’ होता है; जैसे – कार पेट्रोल से चलती है!

 

४. संप्रदान कारक (Dative Case) – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से किसी को देने या किसी के लिए कुछ कार्य करने का पता चलता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं! इसकी विभक्ति चिह्न ‘को, के लिए’ होता है! संप्रदान का शाब्दिक अर्थ देना होता है! जैसे – अधयापक ने गिरिजा को सत्तर अंक दिए!

 

५. अपादान कारक (Ablative Case) – संज्ञा के जिस रूप से अलग होने का बोध होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं! इसकी विभक्ति चिह्न ‘से’ है! अपादान कारक से अलग होने, तुलना करने, निकलने, डरने, लज्जित होने और दूरी होने का बोध होता है! जैसे – पत्ता पेड़ से गिर पड़ा! गणेश आगरा से आ गया!

 

६. संबंध कारक (Genetative Case) – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से इनमें संबंध प्रकट होता है, उसे संबंध कारक कहते हैं! इसके विभक्ति चिह्न ‘का, की, के, रा, ऋ, रे’ आदि होते हैं! जैसे – यह पुस्तक तुम्हारी है! सुषमा सोमी की मौसी है!

 

७. अधिकरण कारक (Locative Case) – संज्ञा और सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के समय, स्थान, आधार आदि का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं! इसके विभक्ति चिह्न ‘में, पर’ हैं! जैसे – आकाश में जहाज उड़ रहा है! दीवार पर कैलेंडर लटका है!

 

८. संबोधन कारक (Vocative Case) – जिस संज्ञा और सर्वनाम का प्रयोग संबोधन के रूप में किया जाता है, उसे संबोधन कारक कहते हैं! इसमें संज्ञा और सर्वनाम से पहले ‘अरे, अरी, रे, हे’ आदि शब्द लगाते हैं! इनके आगे विस्मादिबोधक चिह्न ( ! ) का प्रयोग किया जाता है! जैसे – हे राम! जरा सी लड़की ने नाम में दम कर दिया!

 

कर्मकारक और संप्रदान कारक में अंतर – कर्म कारक में क्रिया का फल कर्म पर पड़ता है! संप्रदान कारक में कर्ता देने का काम करता है!  दोनों कारकों में ‘को’ विभक्ति के कारण भूल होने की संभावना रहती है! कर्मकारक में देने का काम नहीं होता! कर्मकारक में किसी के लिए कार्य नहीं किया जाता, संप्रदान कारक में किया जाता है!

 

करण कारक और अपादान कारक में अंतर – करण द्वारा कर्ता के कार्य करने के माध्यम का बोध होता है! अपादान कारक द्वारा ऐसा नहीं होता है! करण कारक से अलग होने या तुलना का बोध नहीं होता, अपादान कारक से होता है!

 

संज्ञा का रूपांतरण (रूप रचना) (Transformation of Noun) – संज्ञा शब्दों का रूपांतरण लिंग, वचन और कारक की दृष्टि से होता है! जैसे – लड़का पढ़ रहा है! लड़के पढ़ रहे हैं! लड़की तेज दौड़ी! लड़कियाँ तेज दौड़ीं! आदि!

 

और पढ़ें (Next Topics) : सर्वनाम, सर्वनाम के भेद और सर्वनामों का रूप परिवर्तन

 

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