संधि ( Sandhi ) शब्द का अर्थ होता है – मेल या जोड़! भाषा व्यवहार में जब दो शब्द आते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि बाद वाले शब्द की पहली ध्वनि से मिलकर उसे प्रभावित करती है! ध्वनि परिवर्तन की इस प्रक्रिया का नाम ही संधि है!
- इस प्रक्रिया में परिवर्तन कभी पहली ध्वनि में होता है तो कभी दूसरी ध्वनि में और कभी दोनों ध्वनियों में!
- वर्णों में संधि कभी स्वरों के बिच होती है, तो कभी स्वर और व्यंजन के बिच!
- इसी तरह कभी विसर्ग और स्वर के साथ होती है तो कभी विसर्ग और व्यंजनों के साथ!
- यदि वर्णों का मेल तो हो परंतु उसके कारण उनमें किसी तरह का ध्वनि-परिवर्तन न हो तो उसे वर्ण-संयोग कहते हैं, संधि नहीं!
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक पढ़िए –
शरणागत की रक्षा करो – इसमें शरण + आगत से मिलकर शरणागत बना है, दो स्वरों (अ + आ) में संधि हुई है!
अतिथि का यथोचित सत्कार करो – इसमें यथा + उचित से मिलकर यथोचित बना है, दो स्वरों (आ + उ) में संधि हुई है!
वह सज्जन है – इसमें सत् + जन से मिलकर सज्जन बना है, दो व्यंजनों (त् + ज) में संधि हुई है!
उसके मन में दुर्भावना है – इसमें दु: + भावना से मिलकर बना है, इसमें विसर्ग का ‘र’ होकर भा के साथ संधि हुई है!
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि ध्वनियों के पास पास आ जाने से उनके मिलने पर जो परिवर्तन या विकार होता है, उसे संधि कहते हैं! संधियुक्त पदों को अलग अलग करने की प्रक्रिया को संधि-विच्छेद कहते हैं; जैसे – उल्लास = उत् + लास , जगन्नाथ = जगत् + नाथ , गिरीश = गिरि + ईश!
परिवर्तन शून्य समीपता : कई जगह दो ध्वनियाँ परस्पर समीप तो आती हैं किंतु उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता है! ऐसी स्थिति में वे केवल शिरोरेखा के नीचे आ जाती है; जैसे – सत् + कर्म = सत्कर्म, सम् + मान = सम्मान!
संधि के भेद (Kinds of Joining) :
1. स्वर संधि ( Swar Sandhi : Joining of Vowels):
दो स्वरों के परस्पर मेल के कारण जब एक या दोनों स्वरों में परिवर्तन होता है तो उसे स्वर संधि कहते हैं! स्वर संधि के निम्नलिखित भेद माने जाते हैं – 1. दीर्घ संधि : अ, आ, इ, ई, उ, ऊ के साथ अ, आ, इ, ई, उ, ऊ की संधि होने पर ये बदल कर आ, ई, ऊ हो जाता है, जैसे – गत + अनुसार = गतानुसार! 2. गुण संधि : गुण संधि में अलग अलग स्वरों का मेल होता है! जैसे – देव + इंद्र = देवेंद्र! 3. वृद्धि संधि : वृद्धि संधि में अलग अलग स्वरों में मेल होता है! जैसे – मत + ऐक्य = मतैक्य आदि! 4. यण संधि : यण संधि में अलग अलग स्वरों में मेल होता है, जैसे – अति + अधिक = अत्यधिक! 4. अयादि संधि : वैसे तो ये स्वर संधि का नियमित भेद नहीं है, इसलिए इसे विशेष संधि भी कहते हैं! अयादि संधि में भिन्न भिन्न स्वरों में मेल होता है! जैसे – ने + अन = नयन, शे + अन = शयन!
स्वर संधि के भेद, नियम और उदाहरण :
दो स्वरों के परस्पर मेल के कारण जब एक या दोनों स्वरों में परिवर्तन होता है तो उसे स्वर संधि कहते हैं! स्वर संधि के निम्नलिखित भेद माने जाते हैं –
1. दीर्घ संधि :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ के साथ अ, आ, इ, ई, उ, ऊ की संधि होने पर ये बदल कर आ, ई, ऊ हो जाता है जैसे –
अ + अ = आ
गत + अनुसार = गतानुसार, मत + अंश = मतांश, सरल + अर्थ = सरलार्थ, कथन + अनुसार = कथनानुसार, मत + अनुसार = मतानुसार, परम + अर्थ = परमार्थ, धर्म + अर्थ = धर्मार्थ, युग + अंत = युगांत, दान + अर्थी = दानार्थी, पुष्प + अवली = पुष्पावली, स्व + अर्थ = स्वार्थ, अधिक + अधिक = अधिकाधिक, वेद + अंत = वेदांत, शस्त्र + अस्त्र = शस्त्रास्त्र, सत्य + अर्थी = सत्यार्थी, योग + अभ्यास = योगाभ्यास, सूर्य + अस्त = सूर्यास्त आदि!
अ + आ = आ
एक + आकार = एकाकार, छात्र + आदि = छात्रादि, देव + आलय = देवालय, पुस्तक + आलय = पुस्तकालय, भोजन + आलय = भोजनालय, सत्य + आग्रह = सत्याग्रह, हिम + आलय = हिमालय, वर्ण + आश्रय = वर्नाश्रय, नित्य + आनंद = नित्यानंद, धर्म + आत्मा = धर्मात्मा, शिव + आलय = शिवालय आदि!
आ + अ = आ
परिक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी, दिशा + अंत = दिशांत, पूजा + अर्पित = पूजार्पित, सीमा + अंत = सीमांत, विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, शिक्षा + अर्थी = शिक्षार्थी, यथा + अर्थ = यथार्थ, सेवा + अर्थ = सेवार्थ, विद्या + अभ्यास = विद्याभ्यास, आदि!
आ + आ = आ
विद्या + आलय = विद्यालय, महा + आत्मा = महात्मा, दया + आनंद = दयानंद, मदिरा + आलय = मदिरालय, सेवा + आनंद = सेवानंद, कृपा + आलु = कृपालु, श्रद्धा + आलु = श्रद्धालु, महा + आशय = महाशय आदि!
इ + इ = ई
कवि + इंद्र = कवींद्र, हरि + इच्छा = हरीच्छा, अभि + इष्ट = अभीष्ट, अति + इव = अतीव, मुनि + इंद्र = मुनींद्र आदि!
इ + ई = ई
मणि + ईश = मनीश, रवि + ईश = रवीश, परि + ईक्षा = परीक्षा, कपि + ईश = कपीश गिरि + ईश = गिरीश आदि!
ई + इ = ई
शची + इंद्र = शचींद्र, योगी + इंद्र = योगींद्र, मही + इंद्र = महींद्र, नारी + इच्छा = नारीच्छा आदि!
ई + ई = ई
रजनी + ईश = रजनीश, सती + ईश = सतीश, जानकी + ईश = जानकीश, योगी + ईश्वर = योगीश्वर आदि!
उ + उ = ऊ
लघु + उपदेश = लघूपदेश, लघु + उत्तर = लघूत्तर, भानु + उदय = भानूदय, सु + उक्ति = सूक्ति आदि!
उ + ऊ = ऊ
लघु + ऊर्जा = लघूर्जा आदि!
ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्पीड़न = वधूत्पीड़न, वधू + उत्सव = वधूत्सव आदि!
ऊ + ऊ = ऊ
भू + ऊर्जा = भूर्जा, भू + उर्ध्व = भूर्ध्व आदि!
2. गुण संधि :
गुण संधि में अलग अलग स्वरों का मेल होता है! इन स्वरों के मेल से निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं – अ और आ का इ और ई से मेल होता है तो ये ‘ए’ बन जाते हैं! अ और आ का उ और ऊ से मेल हो तो ये ‘ओ’ हो जाते हैं! अ और आ का ऋ से मेल हो तो ये ‘अर्’ हो जाते हैं! जैसे –
अ + इ = ए
देव + इंद्र = देवेंद्र, नर + इंद्र = नरेंद्र, सुर + इंद्र = सुरेंद्र, धर्म + इंद्र = धर्मेंद्र, विमल + इंदु = विमलेंदु, पूर्ण + इंदु = पूर्णेंदु, वीर + इंद्र = वीरेंद्र, नग + इंद्र = नागेंद्र आदि!
अ + ई = ए
दिन + ईश = दिनेश, सुर + ईश = सुरेश, राम + ईश्वर = रामेश्वर, राग + ईश्वर = रागेश्वर आदि!
आ + इ = ए
रमा + इंद्र = रमेंद्र, राजा + इंद्र = राजेन्द्र आदि!
आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश, कमला + ईश = कमलेश, सीता + ईश = सीतेश आदि!
अ + उ = ओ
गणेश + उत्सव = गणेशोत्सव, कुल + उत्तम = कुलोत्तम, वार्षिक + उत्सव = वार्षिकोत्सव आदि!
अ + ऊ = ओ
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा, विचार + ऊर्जा = विचारोर्जा आदि!
आ + ऊ = ओ
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
अ + ऋ = अर्
राज + ऋषि राजर्षि, सप्त + ऋषि = सप्तर्षि आदि!
आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि, राजा + ऋषि = राजर्षि आदि!
3. वृद्धि संधि :
वृद्धि संधि में अलग अलग स्वरों में मेल होता है! इन स्वरों के मेल से निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं; जैसे –
१. अ और आ का ए और ऐ से मेल हो तो ये ऐ हो जाते हैं!
अ + ए = ऐ : एक + एक = एकैक, लोक + एषणा = लोकैषणा आदि!
अ + ऐ = ऐ : मत + ऐक्य = मतैक्य, भाव + ऐश्वर्य = भावैश्वर्य आदि!
आ + ए = ऐ : यथा + एव = यथैव, तथा + एव = तथैव आदि!
आ + ऐ = ऐ : राजा + ऐश्वर्य = राजैश्वर्य
२. अ और आ का ओ और औ से मेल हो तो ये औ हो जाता है!
अ + ओ = औ : दंत + ओष्ठ = दंतोष्ठ, परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
अ + औ = औ : परम + औषध = परमौषध, वन + औषध = वनौषध
आ + ओ = औ : महा + ओज = महौज
आ + औ = औ : महा + औषध = महौषध, महा + औदार्य = महौदार्य
4. यण संधि :
यण संधि में अलग अलग स्वरों में मेल होता है, इन स्वरों के मेल से निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं!
१. इ और ई का भिन्न स्वर से मेल होने पर इनका रूप बदलकर य हो जाता है!
इ + अन्य स्वर = य : अति + अधिक = अत्यधिक, यदि + अपि = यद्यपि, वि + आप्त = व्याप्त, अति + आनंद = अत्यानंद, अभि + आगत = अभ्यागत, अति + उक्ति = अत्योक्ति, वि + ऊह = व्यूह आदि!
ई + अन्य स्वर = य : सखी + आगमन = सख्यागमन, नदी + आगम = नद्यागम आदि!
२. उ और ऊ का भिन्न स्वर से मेल होने पर इनका रूप बदलकर व हो जाता है!
उ + अन्य स्वर = व : सु + अस्ति = स्वस्ति, सु + अल्प = स्वल्प, मनु + अंतर = मन्वंतर आदि!
३. ऋ का मेल भिन्न स्वर से होता है और इनका रूप र हो जाता है!
ऋ + अन्य स्वर = ए : मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा, मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा आदि!
अयादि संधि :
वैसे तो ये स्वर संधि का नियमित भेद नहीं है, इसलिए इसे विशेष संधि भी कहते हैं! अयादि संधि में भिन्न भिन्न स्वरों में मेल होता है! इनमें मेल से निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं – ए, ऐ, ओ, औ का अन्य स्वरों से मेल होने पर इनके रूप बदल जाते हैं; जैसे –
ए + अ = अय् – ने + अन = नयन, शे + अन = शयन
ऐ + अ = अय – नै + अक = नायक, गै + अक = गायक
ओ + अ = अव् – हो + अन = हवन, पो + अन = पवन
औ + अ = आव् – पौ + अक = पावक, पौ + अन = पावन
औ + इ = आवि – नौ + इक = नाविक
औ + उ = आवु – भौ + उक = भावुक आदि!
2. व्यंजन संधि ( Vyanjan Sandhi : Joining of Consonants with Vowels or Consonants):
जब किसी व्यंजन का मेल किसी स्वर या व्यंजन से होता है तो उस व्यंजन में आने वाला परिवर्तन व्यंजन संधि कहलाता है! व्यंजन संधि के नियम निम्नलिखित है – १. वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन २. वर्ग के पहले वर्ण का पांचवे वर्ण में परिवर्तन ३. त् के संबंधी नियम ४. ‘छ’ संबंधी नियम ५. ‘म’ के संबंध में नियम ६. ‘न’ के संबंध में नियम ७. ‘स्’ का ‘ष’ बनना नियम! उदहारण – वाक् + दान =वाग्दान, चित् + मय = चिन्मय, स्व + छंद = स्वच्छंद आदि!
व्यंजन संधि के नियम, उदाहरण और अपवाद :
जब किसी व्यंजन का मेल किसी स्वर या व्यंजन से होता है तो उस व्यंजन में आने वाला परिवर्तन व्यंजन संधि कहलाता है!
व्यंजन संधि के नियम निम्नलिखित है –
१. वर्ग के पहले वर्ण का तीसरे वर्ण में परिवर्तन :
वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् के बाद किसी वर्ग का तीसरा चौथा वर्ण ग, घ, ज, झ, ड, ढ, द, ध ब, भ, य, र, ल, व या किसी स्वर से हो तो पहला वर्ण उसी वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जाता है! जैसे – क्=ग्, च्=ज्, ट्=ड्, त्=द्, प्=ब्!
क=ग : वाक् + दान = वाग्दान, दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन आदि!
च=ज : अच् + अंत = अजंत
ट्=ड : षट् + आनन = षडानन
त् = द् : जगत + अंबा = जगदंबा, उत् + धार = उद्धार
प् = ब् : अप् + द = अब्द, अप् + ज = अब्ज
२. वर्ग के पहले वर्ण का पांचवे वर्ण में परिवर्तन :
यदि वर्ग के पहले वर्ण क, च, ट, त, प का मेल वर्ग के पाँचवे व्यंजन ड., ञ,ण, न, म के साथ होता है तो पहले वर्ण का रूपांतरण पाँचवे वर्ण में हो जाता है; जैसे – क = ड., च=ञ, ट=ण, त=न, प=म!
चित् + मय = चिन्मय, वाक् + मय = वाड.मय, आदि!
३. त् के संबंधी नियम :
त् के विभिन्न स्वरों और व्यंजनों के साथ मेल होने पर निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं –
त् + च = च्च – उत् + चारण = उच्चारण
त् + छ = च्छ – उत् + छिन्न = उछिन्न
त् + ज = ज्ज – उत् + ज्वल = उज्ज्वल
त् + ल = ल्ल – उत् + लास = उल्लास
त् + श = च्छ – उत् + शिष्ठ = उच्छिष्ट
त् + ह = द्ध – उत् + हरण = उद्धरण
त् + ट/ड = ट्/ड् – तत् + टीका = तट्टीका, उत् + डयन = उड्डयन
४. ‘छ’ संबंधी नियम :
यदि किसी स्वर के बाद ‘छ’ आ जाए तो ‘छ’ से पहले ‘च’ का आगम हो जाता है!
अ + छ = च्छ – स्व + छंद = स्वच्छंद
आ + छ = च्छ – आ + छादन = आच्छादन
इ + छ = च्छ – परि + छेद = परिच्छेद
उ + छ = च्छ – अनु + छेद = अनुच्छेद
ऋ + छ = च्छ – भ्रातृ + छाया = भ्रातृच्छाया
५. ‘म’ के संबंध में नियम :
(i) क से लेकर भ तक के किसी भी व्यंजन का मेल यदि म से होता है तो म उसी वर्ग के पाँचवे वर्ण में बदल जाता है! इसका प्रयोग अनुस्वार के रूप में किया जाता है –
सम् + कल्प = संकल्प, सम् + चार = संचार, सम् + तोष = संतोष, सम् + पूर्ण = संपूर्ण आदि!
(ii) म का मेल यदि म से होता है तो म = म्म अर्थात द्वित्व हो जाता है –
सम् + मोहन = सम्मोहन, सम् + मति = सम्मति आदि!
(iii) म का मेल य, र, ल, व, श, ष, स, ह से होने पर म = अनुस्वार हो जाता है –
सम् + युक्त = संयुक्त, सम् + यम = संयम, सम् + रचना = संरचना
६. ‘न’ के संबंध में नियम :
(i) जब ऋ, र, ष का ‘न’ से मेल होता है तो न = ण हो जाता है –
ऋ + न = ऋण, मर + न = मरण, भर + न = भरण, चर + न = चरण, भूष + न = भूषण आदि!
(ii) ऋ, र, ष का न से मेल हो परंतु बिच में चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स आ जाएँ तो ‘न’ नहीं बदलता –
दर्शन, दुर्जन, अर्जुन, अर्चना, पर्यटन आदि!
७. ‘स्’ का ‘ष’ बनना नियम :
जब ‘स’ से पहले अ, आ से भिन्न कोई अन्य स्वर होता है तो स् = ष हो जाता है!
अभि + सेक = अभिषेक, नि + सेध = निषेध, सु + सुप्ति = सुषुप्ति आदि!
अपवाद : अनु + स्वार = अनुस्वार, अनु + सरण = अनुसरण, वि + स्मरण = विस्मरण!
3. विसर्ग संधि ( Visarga Sandhi Joining of Visarga with a Vowel and a Consonant) :
विसर्ग का मेल किसी स्वर या व्यंजन के साथ होने पर विसर्ग में होने वाला परिवर्तन विसर्ग संधि कहलाता है! विसर्ग संधि के नियम – १. विसर्ग का ओ होना २. विसर्ग का र होना ३. विसर्ग का श होना ४. विसर्ग का स होना ५. विसर्ग का ष होना ६. विसर्ग का न होना (विसर्ग का लोप हो जाना) ७. विसर्ग का रहना! जैसे – मनः + अनुकूल = मनोनुकूल, निः + अर्थक = निरर्थक, निः + चल = निश्चल आदि!
विसर्ग संधि के नियम और उदाहरण :
विसर्ग का मेल किसी स्वर या व्यंजन के साथ होने पर विसर्ग में होने वाला परिवर्तन विसर्ग संधि कहलाता है!
विसर्ग संधि के नियम :
१. विसर्ग का ओ होना :
यदि विसर्ग से पहले अ हो और विसर्ग का मेल अथवा कोई सघोष व्यंजन (वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवा वर्ण) – अ, ग, घ, ड., ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म और य, र, ल, व, ह तो विसर्ग (:) = ओ के रूप में बदल जाता है –
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल, तमः + गुण = तमोगुण, मनः + ज = मनोज, पयः + धर = पयोधर, यशः + दा = यशोदा आदि!
२. विसर्ग का ‘र’ होना :
यदि विसर्ग से पहले अ और आ से भिन्न स्वर हो और विसर्ग का मेल किसी स्वर के साथ या किसी वर्ग के तीसरे, चौथे, पांचवें वर्ण के साथ या य, र, ल, व, ह के साथ हो तो विसर्ग = र के रूप में बदल जाता है!
निः + अर्थक = निरर्थक, निः + उत्साह = निरुत्साह, अंतः + गत = अंतर्गत, निः + आशा = निराशा, निः + गुण = निर्गुण, निः + लिप्त = निर्लिप्त, निः + जन = निर्जन, निः + बल = निर्बल आदि!
३. विसर्ग का श होना :
यदि विसर्ग से पहले स्वर हो और विसर्ग का मेल च, छ, श से हो तो विसर्ग = श् हो जाता है!
निः + चल = निश्चल, दुः + मन = दुश्मन, निः + चेष्ट = निश्चेष्ट, दुः + चरित्र = दुश्चरित्र आदि!
४. विसर्ग का स होना :
जब विसर्ग का मेल त्, थ् और स् से होता है तो विसर्ग = स् में बदल जाता है!
निः + तेज = निस्तेज, दुः + तर = दुस्तर, मरुः + थल = मरुस्थल, निः + संतान = निस्संतान आदि!
५. विसर्ग का ष होना :
जब विसर्ग से पहले इ, उ हो और विसर्ग का मेल क, ख, ट, ठ, प, फ से हो तो विसर्ग = ष् में बदल जाता है!
निः + कपट = निष्कपट, दुः + फल = दुष्फल, धनुः + टंकार = धनुष्टंकार, आविः + कार = अविष्कार आदि!
६. विसर्ग का न होना (विसर्ग का लोप हो जाना) :
(i) यदि विसर्ग का में र् से हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है! इसके साथ ही विसर्ग से पहले लगा स्वर दीर्घ हो जाता है –
निः + रव = नीरव, निः + रज = नीरज, निः + रोग = नीरोग आदि!
(ii) यदि विसर्ग से पहले अ, या, आ हो और विसर्ग का मेल किसी अन्य स्वर से होता है तो विसर्ग का लोप हो जाता है!
अतः + एव = अतएव, ततः + एव = ततएव आदि!
७. विसर्ग का रहना :
यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ हो और विसर्ग का मेल ‘क’ ‘ख’ ‘प’ ‘फ’ से हो तो विसर्ग बना रहता है!
अंतः + करण = अंतःकरण, पयः + पान = पयःपान, प्रातः + काल = प्रातःकाल आदि!
हिंदी की अपनी संधियाँ :
उपर्युक्त संधि नियम संस्कृत शब्दों पर लागू होते हैं! हिंदी में जब दो भिन्न शब्द एक साथ आते हैं तो वे संधि के नियम के अनुसार जुड़कर एक ही शब्द के रूप में अथवा समस्त पद के रूप में प्रयुक्त होते हैं; जैसे – राम + अभिलाषा – रामाभिलाषा न होकर राम-अभिलाषा ही रहता है! हिंदी के अपने शब्दों के मेल के लिए कुछ नियम विकसित हो गए हैं; जैसे –
- ह्रस्वीकरण : सामासिक शब्दों में पूर्वपद के दीर्घस्वर प्रायः ह्रस्व हो जाते हैं; जैसे – आम + चूर = आमचूर, हाथ + कड़ी = हथकड़ी!
- अल्पप्राणीकरण : संधि करने पर पहले शब्द की अंतिम ध्वनि परिवर्तित होकर अल्पप्राण बन जाती है; जैसे – ताख पर = ताक पर!
- महाप्राणीकरण : पहले शब्द की अंतिम ध्वनि अल्पप्राण हो और उसका मेल ‘ह’ से हो तो यह महाप्राण हो जाती है; जैसे – सब + ही = सभी, कब + ही = कभी, आदि!
- ध्वनि लुप्त होना : संधि करते समय कुछ स्थितियों में एक ध्वनि लुप्त हो जाती है; जैसे – वहाँ + ही = वहीँ, यहाँ + ही = यहीं!
- ध्वनि आना : संधि करते समय कुछ स्थितियों में ‘य’ आ जाता है; जैसे – पुत्री + ओं = पुत्रियों, नदी + ओं = नदियों आदि!
- दीर्घ स्वर का ह्रस्व बनना : संधि करने पर समास से पहले पद का दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है; जैसे – रात + जगा = रतजगा, फूल + वारी = फुलवारी आदि!
- अंतिम स्वर ह्रस्व होना : संधि करने पर पहले शब्द का अंतिम दीर्घ स्वर ह्रस्व हो जाता है; जैसे – बड़ा + पन = बड़प्पन, लड़का + पन = लड़कपन आदि!
- स्वर में परिवर्तन होना : संधि करते समय कई बार सामासिक पदों के स्वर बदल जाते हैं; जैसे – छोटा + पन = छुटपन, पानी + घाट = पनघट आदि!
- सादृश्यीकरण : कई संधि स्थलों पर दो भिन्न ध्वनियाँ एक समान हो जाती है; जैसे – पोत् + दार = पोद्दार!
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