भारतीय संविधान में अब तक किए गए प्रमुख संशोधन

Image Courtesy : IBN

भारत के संविधान में अब तक हुए प्रमुख संशोधन कुछ इस प्रकार हैं – पहला संशोधन (1951 ई०) : इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से संबंधित अधिकारों को लागू किये जाने संबंधी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया! भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर इसमें उचित प्रतिबंध की व्यवस्था की गई! साथ ही इस संसोधन द्वारा संविधान में नौंवीं अनुसूची जोड़ा गया, जिसमें उल्लिखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्गत परिक्षा नहीं की जा सकती है!

 

दूसरा संशोधन (1952 ई०) : इसके अंतर्गत 1951 ई० की जनगणना के आधार पर लोकसभा में प्रतिनिधित्व को पुनर्व्यवस्थित किया गया!

 

तीसरा संशोधन (1954 ई०) : इसके अंतर्गत सातवीं अनुसूची को समवर्ती सूचि की तैंतिसवी प्रविष्टि के स्थान पर खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा, कच्चा कपास, जूट आदि को रखा गया, जिसके उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर सरकार उस पर नियंत्रण लगा सकती है!

और पढ़ें : भारतीय संविधान की प्रमुख अनुसूचियां और भाग

 

चौथा संसोधन (1955 ई०) : इसके अंतर्गत व्यक्तिगत संपत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किये जाने की स्थिति में, न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परिक्षा नहीं कर सकती!

 

छठा संशोधन (1956 ई०) : इस संसोधन द्वारा सातवीं अनुसूची के संघ सूचि में परिवर्तन कर अंतरराज्जीय बिक्री कर के अंतर्गत कुछ वस्तुओं पर केंद्र को कर लगाने का अधिकार दिया गया!

 

सातवाँ संशोधन (1956 ई०) : इस संशोधन द्वारा भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पहले के तीन श्रेणियों में राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करते हुए राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में उन्हें विभाजित किया गया! साथ ही, इनके अनुरूप केंद्र एवं राज्य की विधान पालिकाओं में सीटों को पुनर्व्यवस्थित किया गया!

 

आठवां संशोधन (1959 ई०) : इसके अंतर्गत केंद्र एवं राज्यों के निम्न सदनों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं आंग्ल भारतीय समुदायों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों को दस वर्षों के लिए अर्थात 1970 ई० तक बढ़ा दिया गया!

 

नौवां संशोधन (1960 ई०) : इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके भारत एवं पाकिस्तान के बिच 1958 की संधि शर्तों के अनुसार बेरुबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिया गया!

और पढ़ें : भारतीय संविधान में न्यायपालिका की व्यवस्था एवं अधिकार

 

दसवां संशोधन (1961 ई०) : इसके अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतःक्षेत्रों दादर नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केन्द्रशासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया!

 

ग्यारहवां संशोधन (1961 ई०) : इसके अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के प्रावधानों में परिवर्तन कर, इस संदर्भ में दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को बुलाया गया! साथ ही यह भी निर्धारित किया गया की निर्वाचकमंडल में पद की रिक्तता के आधार पर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती नहीं दी जा सकती!

 

बारहवां संशोधन (1962 ई०) : इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमण एवं दीव को भारत में केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया!

 

तेरहवाँ संशोधन (1962 ई०) : इसके अंतर्गत नागालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपनाकर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया!

 

चौदहवां संशोधन (1963 ई०) : इसके द्वारा केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में पुडुचेरी को भारत में शामिल कर लिया गया! साथ ही, इसके द्वारा हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन एवं दीव तथा पुडुचेरी केन्द्रशासित प्रदेशों में विधानपालिका एवं मंत्रिपरिषद की स्थापना की गई!

 

पंद्रहवां संशोधन (1963 ई०) : इसके अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों की उच्च न्यायालय में नियुक्ति से संबंधित प्रावधान बनाये गए!

 

सोलहवां संशोधन (1963 ई०) : इसके द्वारा देश की संप्रभुता एवं अखंडता के हित में मूल अधिकारों पर कुछ प्रतिबन्ध लगाने के प्रावधान रखे गए हैं! साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत ‘मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखंडता को बनाए रखूँगा’ जोड़ा गया!

 

सत्रहवां संशोधन (1964 ई०) : इसमें संपत्ति के अधिकारों में और भी संशोधन करते हुए कुछ अन्य भूमि सुधार प्रावधानों को नौंवीं अनुसूची में रखा गया, जिनकी वैधता की परिक्षा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नहीं की जा सकती थी!

 

अठारहवां संशोधन (1966 ई०) : इसके अंतर्गत पंजाब का भाषायी आधार पर पुनर्गठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब एवं हिंदी भाषी क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया! पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए तथा चंडीगढ़ को केन्द्रशासित प्रदेश बनाया गया!

 

उन्नीसवां संशोधन (1966 ई०) : इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया एवं उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाएं सुनने का अधिकार दिया गया!

और पढ़ें : भारतीय संसदीय कार्यप्रणाली के प्रमुख शब्दावली

 

बीसवां संसोधन (1966 ई०) : इसके अंतर्गत अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान की गई!

 

इक्कीसवां संशोधन (1967 ई०) : इसके द्वारा सिंधी भाषा की संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत पंद्रहवीं भाषा के रूप में शामिल किया गया!

 

बाईसवाँ संशोधन (1969 ई०) : इसके द्वारा असम से अलग करके एक नया राज्य मेघालय बनाया गया!

 

तेइसवां संशोधन (1969 ई०) : इसके अंतर्गत विधान पालिकाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन और दस वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया!

 

चौबीसवां संशोधन (1971 ई०) : इस संशोधन के अंतर्गत संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया की वह संविधान के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं, संशोधित कर सकती है! साथ ही, यह भी निर्धारित किया गया की संशोधन संबंधी विधेयक जब दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष जाएगा तो इसपर राष्ट्रपति द्वारा सम्मति दिया जाना बाध्यकारी होगा!

 

छब्बीसवां संशोधन (1971 ई०) : इसके अंतर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की विशेष उपाधियों एवं उनके प्रीवि-पर्स को समाप्त कर दिया गया!

 

सत्ताईसवाँ संशोधन (1971 ई०) : इसके अंतर्गत मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को केन्द्रशासित प्रदेशों के रूप में स्थापित किया गया!

 

उनतीसवाँ सशोधन (1972 ई०) : इसके अंतर्गत केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1969 तथा केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम 1971 को संविधान की नौंवीं अनुसूची में रख दिया गया, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके!

 

इकतीसवाँ संशोधन (1973 ई०) : इसके द्वारा लोकसभा के सदस्यों की संख्या 525 से 545 कर दी गई तथा केन्द्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व 25 से घटाकर 20 कर दिया गया!

 

बत्तीसवाँ संशोधन (1974 ई०) : इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों पारित बीस भू सुधार अधिनियमों को नौंवीं अनुसूची में प्रवेश देते हुए उन्हें न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैधता के परिक्षण से मुक्त किया गया!

 

पैंतीसवाँ संशोधन (1974 ई०) : इसके अंतर्गत सिक्किम का संरक्षित राज्यों का दर्जा समाप्त कर उसे सम्बद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया!

और पढ़ें : भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी आचार संहिता

 

छत्तीसवाँ संशोधन (1975 ई०) : इसके अंतर्गत सिक्किम को भारत का बाईसवाँ राज्य बनाया गया!

 

सैंतीसवाँ संशोधन (1975 ई०) : इसके तहत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं केन्द्रशासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किये जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया!

 

उनतालीसवाँ संशोधन (1975 ई०) : इसके द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं लोकसभाध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों को न्यायिक परिक्षण से मुक्त कर दिया गया!

 

इकतालीसवाँ संशोधन (1976 ई०) : इसके द्वारा राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों की सेवा मुक्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई, पर संघ लोकसेवा आयोग के सदस्यों की सेवा निवृति की अधिकतम आयु 65 वर्ष रहने दी गई!

 

बयालीसवां संशोधन (1976 ई०) : इसके द्वारा संविधान में व्यापक परिवर्तन लाए गए, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित थे – (क) संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं एकता और अखंडता आदि शब्द जोड़े गए!

(ख) सभी नीति निर्देशक सिद्धांतों को मूल अधिकारों पर सर्वोच्चता सुनिश्चित की गई!

(ग) इसके अंतर्गत संविधान में दस मौलिक कर्तव्यों को अनुच्छेद 51 (क), के अंतर्गत जोड़ा गया!

(घ) इसके द्वारा संविधान को न्यायिक परिक्षण से मुक्त रखा गया!

(ड.) सभी विधानसभाओं एवं लोकसभा की सीटों की संख्या को इस शताब्दी के अंत तक को स्थिर कर दिया गया!

(च) लोकसभा एवं विधानसभाओं की अवधि को पांच वर्ष से छह वर्ष के लिए कर दिया गया!

(छ) इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया की किसी भी केन्द्रीय कानून की वैधता पर सुप्रीम न्यायालय एवं राज्य के कानून की वैधता का उच्च न्यायालय ही परिक्षण करेगा! साथ ही, यह भी निर्धारित किया गया की किसी भी संवैधानिक वैधता के प्रश्न पर पाँच से अधिक न्यायधीशों की बेंच द्वारा दो तिहाई बहुमत से निर्णय दिया जाना चाहिए और यदि न्यायाधीशों की संख्या पाँच तक हो तो निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए!

(ज) इसके द्वारा वन संपदा, शिक्षा, जनसँख्या नियंत्रण आदि विषयों को राज्य सूचि से समवर्ती सूचि के अंतर्गत तक कर दिया गया!

(झ) इसके अंतर्गत निर्धारित किया गया की राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद एवं उसके प्रमुख प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करेगा!

(ट) इसने संसद को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से निपटने के लिए कानून बनाने के अधिकार दिए एवं सर्वोच्चता स्थापित की!

 

चौवालिसवाँ संशोधन (1978 ई०) : इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए ‘आंतरिक अशांति’ के स्थान पर सैन्य विद्रोह का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति संबंधी अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटाकर विधिक अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया! लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई! उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल करने की अधिकारिता प्रदान की गई!

 

पचासवाँ संशोधन (1984 ई०) : इसके द्वारा अनुच्छेद 33 में संशोधन कर सैन्य सेवाओं की पूरक सेवाओं में कार्य करने वालों के लिए आवश्यक सूचना एकत्रित करने, देश की संपत्ति की रक्षा करने और कानून तथा व्यवस्था से संबंधित दायित्व भी दिए गए! साथ ही इन सेवाओं द्वारा उचित कर्तव्य पालन हेतु संसद को कानून बनाने के अधिकार भी दिए गए!

 

बावनवाँ संशोधन (1985 ई०) : इस संशोधन के द्वारा राजनीतिक दल बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया! इसके अंतर्गत संसद या विधान मंडलों के उन सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, जो उस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिह्न पर उन्होंने चुनाव लड़ा था, पर यदि किसी दल की संसदीय पार्टी के एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहे तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी! दल बदल विरोधी इन प्रावधानों को संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया!

 

तिरपनवाँ संशोधन (1986 ई०) : इसके अंतर्गत अनुच्छेद 371 में खंड ‘जी’ जोड़कर मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया!

 

चौवनवाँ संशोधन (1986 ई०) : इसके द्वारा संविधान की दूसरी अनुसूची के भाग ‘डी’ में संशोधन कर न्यायधीशों के वेतन में वृद्धि का अधिकार संसद को दिया गया!

 

पचपनवाँ संशोधन (1986 ई०) : इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया!

 

छप्पनवाँ संसोधन (1987 ई०) : इसके अंतर्गत गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया तथा दमन और दीव को केन्द्रशासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया!

 

सत्तावनवाँ संशोधन (1987 ई०) : इसके अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के संबंध में मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं अरुणाचल प्रदेश की विधानसभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया!

 

अठ्ठावनवाँ संशोधन (1987 ई०) : इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रमाणिक हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया!

 

साठवाँ संशोधन (1988 ई०) : इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा को 250 रूपये से  बढ़ाकर 2500 रूपये प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष कर दिया गया!

 

इकसठवाँ संशोधन (1989 ई०) : इसके द्वारा मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 लाने का प्रस्ताव था!

 

पैंसठवाँ संशोधन (1990 ई०) : इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई!

 

उनहतरवाँ संशोधन (1991 ई०) : दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया तथा दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र के लिए विधानसभा और मंत्री परिषद् का उपबंध किया गया!

 

सत्तरवाँ संशोधन (1992 ई०) : दिल्ली और पुडुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया!

 

इकहत्तरवाँ संशोधन (1992 ई०) : आठवीं अनुसूची में कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को सम्मिलित किया गया!

 

तिहत्तरवाँ संशोधन (1992 – 1993 ई०) : इसके अंतर्गत संविधान में ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई! इसके पंचायतीराज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया! इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग – 9 जोड़ा गया! इसमें अनुच्छेद 243 और अनु 243 क से 243 ण तक अनुच्छेद है!

 

चौहत्तरवाँ संशोधन (1993 ई०) : इसके अंतर्गत संविधान में बारहवीं अनुसूची शामिल की गयी, जिसमें नगरपालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किये गए हैं! इस संशोधन के द्वारा संविधान में भाग – 9 क जोड़ा गया!

 

छिहत्तरवाँ संशोधन (1994 ई०) : इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नौंवी अनुसूची में संशोधन किया ग्या है और तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण उपबंध को नौंवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया है!

 

अठहत्तरवाँ संशोधन (1995 ई०) : इसके द्वारा नौंवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधार विधियों को समाविष्ट किया गया है! इस प्रकार नौंवीं अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गयी है!

 

उन्नासीवाँ संशोधन (1999 ई०) : अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 ई० तक के लिए बढ़ा दी गई है! इस संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई की अब राज्यों को प्रत्यक्ष करों से प्राप्त कुल राशि का 29% हिस्सा मिलेगा!

 

बेरासीवाँ संशोधन (2000 ई०) : इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों में आरक्षित स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्तांकों में छुट प्रदान की गई है!

 

चौरासीवाँ संशोधन (2000 ई०) : इस संशोधन अधिनियम द्वारा लोकसभा तथा विधानसभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2026 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया जाता है!

 

पचासीवाँ संशोधन (2001 ई०) : सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति/जनजाति के अभ्यार्थियों के लिए पदोन्नतियों में आरक्षण की व्यवस्था!

 

छियासीवाँ संशोधन (2002 ई०) : इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य निशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान में जोड़ा गया है! इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 तथा 51 (क) में संशोधन किये जाने का प्रावधान है!

और बढ़ें : राज्य की कार्यपालिका, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और व्यवस्थाएं

 

सतासीवाँ संशोधन (2003 ई०) : परिसीमन में जनसँख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई!

 

अठासीवाँ संशोधन (2003 ई०) : सेवाओं पर कर का प्रावधान!

 

नब्बेवाँ संशोधन (2003 ई०) : असम विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरकार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल काउंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा!

 

इक्यानवेवाँ संशोधन (2003 ई०) : दल बदल व्यवस्था में संशोधन, केवल संपूर्ण दल के विलय को मान्यता, केंद्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोकसभा तथा विधानसभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत होगा ( जहाँ सदन की संख्या 40-40 है वहाँ अधिकतम 12 होगी)!

 

बेरनावेवाँ संशोधन (2003 ई०) : संविधान की आठवीं अनुसूची में बोडो, डोगरी, मैथिलि और संथाली भाषाओँ का समवेश!

 

तिरानवेवाँ संशोधन (2006 ई०) : शिक्षा संस्थाओं में अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 15 की धारा 4 के प्रावधानों के तहत की गई है!

 

चौरानवेवाँ संशोधन (2006 ई०) : इस संशोधन द्वारा बिहार राज्य को एक जनजाति कल्याण मंत्री नियुक्त करने के उतरदायित्व से मुक्त कर दिया गया तथा इस प्रावधान को झारखंड व छत्तीसगढ़ में लागु करने की व्यवस्था की गई! मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा में यह व्यवस्था पहले से ही लागु है!

 

पंचानवेवाँ संशोधन (2009 ई०) : इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 334 में संशोधन कर लोकसभा में अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण एवं आंग्ल भारतियों को मनोनीत करने संबंधी प्रावधान को 2020 तक बढ़ा दिया गया है!

 

एक सौ चौबीसवाँ संशोधन (2019 ई०) : सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10% आरक्षण देने का प्रावधान किया गया!

 

एक सौ छबीसवाँ संशोधन (2019 ई०) : अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण 10 साल के लिए बढ़ाने का प्रावधान है! वहीं इसमें संसद में एंग्लो इंडियन कोटा खत्म करने का प्रावधान है!

और पढ़ें : भारतीय राजव्यवस्था में वरीयता अनुक्रम

 

उम्मीद है ये रोचक पोस्ट आपको जरुर पसंद आया होगा! पोस्ट को पढ़ें और शेयर करें (पढाएं) तथा अपने विचार, प्रतिक्रिया, शिकायत या सुझाव से नीचे दिए कमेंट बॉक्स के जरिए हमें अवश्य अवगत कराएं! आप हमसे हमसे  ट्विटर  और  फेसबुक  पर भी जुड़ सकते हैं!

Exit mobile version