समास ( Samas ) शब्द का अर्थ है – पास रखना, छोटा करना! भाषा के प्रयोग में सामासिक शब्दों के प्रयोग से संक्षिप्तता और शैली कृष्टता एवं सटीकता आती है! उदहारण के लिए ‘राजा का महल’ कहने के स्थान पर राजमहल कहना अधिक अधिक उपयुक्त होगा! इससे स्पष्ट है की दो से अधिक शब्दों के मिलने पर ही सामासिक शब्दों का निर्माण होता है! इस प्रक्रिया में दो पदों के बिच वाले कुछ व्याकरणिक शब्दों का लोप करने से दोनों पद पास पास आ जाते हैं!
समास ( Samaas ) वह शब्द-रचना है जिसमें अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द किसी स्वतंत्र शब्द की रचना करते हैं! उदहारण – माता + पिता = माता-पिता! सामासिक शब्द में प्रायः दो पद होते हैं! पहले पद होते हैं! पहले पद को पूर्वपद तथा दुसरे पद को उत्तरपद कहते हैं! समान प्रक्रिया से बने पद को ‘समस्तपद’ कहते हैं! समस्पद के दोनों पदों को अलग अलग करने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं! विग्रह करते समय लुप्त व्याकरणिक शब्द पुनः दिखाई देने लगते हैं; जैसे – गंगा का जल – गंगाजल! इसमें गंगाजल – समस्तपद, गंगा पूर्व पद, जल – उत्तर पद और गंगा का जल – समास-विग्रह!
समास के लिए कम से कम दो पद चाहिए! समास होने पर दोनों या अधिक पद मिलकर एक संक्षिप्त रूप धारण कर लेते हैं! समास-प्रक्रिया में बिच की विभक्तियों का लोप हो जाता है! समास होने पर जहाँ संधि संभव होती है, वहाँ नियमों के अनुसार संधि भी हो जाती है! हिंदी में समास-प्रक्रिया के अंतर्गत तीन प्रकार से शब्दों की रचना हो सकती है –
(i) तत्सम + तत्सम शब्दों के समास से; जैसे – राष्ट्र + पिता = राष्ट्रपिता
(ii) तद्भव + तद्भव शब्दों के समास से; जैसे – घोड़ा + सवार = घुड़सवार
(iii) विदेशी + विदेशी शब्दों के समास से; जैसे – हवाई + जहाज = हवाईजहाज
दो भिन्न भाषाओँ से आए शब्दों के मेल से बने समस्त पद ‘संकर’ होते हैं –
विदेशी + तत्सम = जिलाधीश, तत्सम + विदेशी = योजना कमीशन
विदेशी + तद्भव = पॉकेटमार, तद्भव + विदेशी = डाकखाना
समास के भेद ( Samaas Ke bhed : Kinds of Compounds ) –
१. अव्ययीभाव समास २. तत्पुरुष समास ३. कर्मधारय समास ४. द्विगु समास ५. बहुव्रीहि समास ६. द्वंद्व समास
१. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound) – प्रत्येक समास में दो पद होते हैं! जिस समास का पहला पद प्रधान तथा अव्यय होता है और समस्त पद भी अव्यय (क्रिया विशेषण) का कार्य करता है! उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं! अव्ययीभाव समास लिंग, वचन, कारक, पुरुष आदि की दृष्टि से परिवर्तित नहीं होता! पुनरुक्त शब्दों में समानता होने पर भी अव्ययीभाव समास होता है! जैसे – साफ-साफ, यथारूप!
२. तत्पुरुष समास (Determinative Compound) – तत्पुरुष समास में उत्तरपद प्रधान होता है और पूर्वपद गौण होता है! तत्पुरुष समास की रचना समस्त पदों के बिच में आने वाले परसर्गों का लोप हो जाता है! जैसे – पूजाघर! तत्पुरुष समास की रचना प्रायः दो प्रकार से होती है –
(i) संज्ञा + संज्ञा : इसमें दोनों पद संज्ञा होते हैं; जैसे – दिवारघड़ी आदि!
(ii) संज्ञा + क्रिया : इसमें पहला पद संज्ञा और दूसरा पद क्रिया होता है; जैसे – भुखमरा!
तत्पुरुष समास में कारक की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं! कारक की दृष्टि से तत्पुरुष समास छः प्रकार के होते हैं –
1. कर्म तत्पुरुष – इसमें को-विभक्ति का लोप हो जाता है; यश को प्राप्त – यशप्राप्त!
2. करण तत्पुरुष – इसमें ‘से, के द्वारा’- विभक्ति का लोप हो जाता है; मन से चाहा – मनचाहा!
3. संप्रदान तत्पुरुष – इसमें ‘को, के लिए’-विभक्ति का लोप हो जाता है; देश के लिए प्रेम – देशप्रेम!
4. अपादान तत्पुरुष – इसमें ‘से’-विभक्ति का लोप हो जाता है; प्रदुषण से रहित – प्रदुषणरहित!
5. संबंध तत्पुरुष – इसमें ‘का, के, की’-विभक्ति का लोप हो जाता है; भारत का इंदु – भारतेंदु!
6. अधिकरण तत्पुरुष – इसमें ‘में, पर’-विभक्ति का लोप हो जाता है; जल में मग्न – जलमग्न!
7. एक अन्य भेद – नञ तत्पुरुष – जिस समास का पहला पद नकारात्मक या अभावात्मक होता है, उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं! जैसे – न देखा – अनदेखा!
३. कर्मधारय समास ( Appositional Compound ) – कर्मधारय समास में दो स्थितियाँ होती हैं –
(i) पूर्वपद विशेषण तथा उत्तरपद विशेष्य होता है; जैसे – नीलकमल!
(ii) पूर्वपद और उत्तरपद में उपमेय-उपमान का संबंध होता है; जैसे – कमलनयन!
४. द्विगी समास (Numeral Compound) – जिस समास का पूर्वपद संख्यावाची होता है, वहाँ द्विगु समास होता है! अर्थ की दृष्टि से यह समास प्रायः समूहवाची होता है; जैसे – सात सौ का समूह – सतसई!
५. द्वंद्व समास (Compulative Compound) – जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं, उसे द्वद्व समास कहते हैं! द्वंद्व समास में दोनों पदों को जोड़ने वाले समुच्चयबोध अव्यय का लोप हो जाता है! जैसे – गुरु और शिष्य – गुरु-शिष्य!
६. बहुव्रीहि समास (Attributive Compound) – जिस समास के दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं! बहुब्रीहि समास के दोनों पद गौण होते हैं! इसमें अन्य पद ही प्रधान होता है! जैसे – शूल है पाणि में जिसके – शूलपाणि अर्थात् शिव!
कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में अंतर –
कर्मधारय समास के दोनों पद विशेषण – विशेष्य या उपमेय-उपमान होते हैं! बहुब्रीहि समास में दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं!
बहुव्रीहि और द्विगु समास में अंतर –
द्विगु समास में पहला पद संख्यासूचक होता है! यह पद दूसरे पद की संख्या सूचित करता है! कुछ बहुव्रीहि समासों में पहला पद संख्यासूचक तो होता है परंतु यह संख्या की सूचना नहीं देता! यह पद दूसरे पद से मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करता है!
समास ( Samaas ) और संधि (Sandhi ) में अंतर –
संधि दो वर्णों में होती है! संधि में पहले की अंतिम ध्वनि और दुसरे शब्द की पहली ध्वनि में मेल होता है! इस मेल के कारण इन ध्वनियों का रूप बदल जाता है! जैसे – विद्या + आलय = विद्यालय! संधि में दोनों शब्दों के मूल अर्थों में अंतर नहीं आता! समास में दो या दो से अधिक शब्दों में मेल होता है! इस मेल से बने नए शब्द के दोनों पदों के अर्थ बदल जाते हैं! कई स्थानों पर इनके अर्थ नहीं बदलते! समास को तोडना को ‘समास-विग्रह’ कहलाता है! संधि को तोडना ‘संधि-विच्छेद’ कहलाता है!
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