Barabar : बराबर की सप्त गुफाएं, महाभारत कालीन प्राचीन सिद्धेश्वर नाथ मंदिर

बराबर ( बाणावर ) भारत के बिहार राज्य के जहानाबाद जिले में स्थित एक प्रमुख पर्यटन स्थल है। ये दो वजहों से प्रसिद्द है, एक तो महाभारत कालीन प्राचीनतम शिवमंदिरों में एक बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर के लिए, और दूसरा बराबर की गुफाओं के लिए, जो चट्टानों को काटकर बनाया गया भारत के प्राचीनतम गुफाओं में से एक है। जिनमें से ज्यादातर का संबंध मौर्य काल से है और कुछ में अशोक के समय के शिलालेखों को देखा जा सकता है। ये गुफाएं भारत के बिहार राज्य के जहानाबाद जिले में गया से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

 

बाणावर की गुफाओं में बराबर की चार गुफाएं और नागार्जुनी तीन गुफाएं जुड़वां पहाड़ियों में स्थित हैं, जिसे सातघर या सतघरवा भी कहा जाता है। पहाड़ों को सावधानी से काट कर हजारों साल पहले इंसान ने इन बेहद सुंदर गुफाओं को बनाया है। बराबर में ज्यादातर गुफाएं दो कक्षों की बनी हैं जिन्हें पूरी तरह से ग्रेनाईट को तराशकर बनाया गया है, जिनमें एक उच्च-स्तरीय पॉलिश युक्त आतंरिक सतह और गूंज का रोमांचक प्रभाव मौजूद है। इस स्थान पर चट्टानों से निर्मित कई बौद्ध और हिंदू मूर्तियां भी पायी गयी हैं। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार पर्वत पर बनी गुफाएं प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के ध्यान साधना लगाने हेतु सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनाई गई थी।

 

जब इन गुफाओं की दीवारों को देखते हैं, तो लगता है जैसे उन्हें अभी पॉलिश किया गया हो। यह पॉलिश एकदम नयी सी लगती है। इनमें से कई गुफाओं की दीवारों को देखकर आप तब दंग रह जाएंगे जब पाएंगे कि उनकी चिकनाई आज के समय में लगाई जाने वाली टाइल्स से कम नहीं हैं। इसे देखकर यह मानना मुश्किल हो जाता है कि, ये गुफाएँ 2400 साल से ज्यादा पुरानी हैं। मौर्य काल की यह स्थापत्य कला पर्यटकों को आश्चर्य से भर देती है। इन गुफाओं के कारीगरों ने इतनी बड़ी चट्टान को काटकर, उसे तराशकर इतना अच्छा और सुंदर गुबंद न जाने कैसे बनाया होगा, ये अपने आप में एक आश्चर्य जैसा लगता है। बारबर पहाड़ में अवस्थित इन गुफाओं को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।

 

बराबर की चार गुफाएँ –

बराबर पहाड़ी में चार गुफाएं शामिल हैं – कर्ण चौपड़, लोमस ऋषि की गुफा, सुदामा गुफा और विश्व झोपड़ी। सुदामा और लोमस ऋषि गुफाएँ भारत में चट्टानों को काटकर बनायीं जाने वाली गुफाओं की वास्तुकला के सबसे आरंभिक उदाहरण हैं, जिनमें मौर्य काल में निर्मित वास्तुकला संबंधी विवरण मौजूद हैं और बाद की सदियों में यह महाराष्ट्र में पाए जाने वाले अजंता और कार्ला की गुफाओं में चलन के रूप में दीखता है। इसने चट्टानों को काटकर बनायी गयी दक्षिण एशियाई वास्तुकला की परंपराओं को भी काफी हद तक प्रभावित किया है।

लोमस ऋषि की गुफा – इस गुफा का निर्माण अशोक ने करवाया था। लोमस ऋषि की गुफा एकमात्र ऐसी गुफा है जिसके प्रवेश द्वार पर उत्कीर्णन का काम किया हुआ है। इसके प्रवेश द्वार पर बने मेहराब पर ऐसे दो अर्धवृत्त हैं, जिनमें से ऊपरी अर्धवृत्त पर जाली का काम किया गया तो निचले अर्धवृत्त पर हाथियों की पंक्ति उत्कीर्णित है। मेहराब की तरह के आकार वाली ये लोमस ऋषि गुफा, लकड़ी की समकालीन वास्तुकला से प्रेरित है। इन गुफाओं का निर्माण, इसकी उच्च स्तरीय पॉलिश और बारीक उत्कीर्णन उस समय के भारतीय कारीगरों के उत्कृष्ट कलाकारी एवं वास्तु विशेषज्ञता का एक अद्भुत नमूना है। यहां कई गुफाओं के अंदर भी गुफाएं है जहां तक पहुंचना काफी मुश्किल है।

सुदामा गुफा – इस गुफा का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक द्वारा अपने राज्याभिषेक के बारहवें वर्ष में आजीवक साधुओं के लिए करवाई गयी थी और इसमें एक आयताकार मण्डप के साथ वृत्तीय मेहराबदार कक्ष बना हुआ है।

कर्ण चौपड़ – इस गुफा का निर्माण अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 19वें वर्ष में कराया था। यह पॉलिश युक्त सतहों के साथ एक एकल आयताकार कमरे के रूप में बना हुआ है जिसमें उस समय के शिलालेख मौजूद है। शिलालेखों के अनुसार इस पहाड़ी को सलाटिका के नाम से भी जाना जाता था। कर्ण चौपड़ गुफा को सुप्रिया गुफा भी कहा जाता था।

विश्व झोपड़ी – इसमें दो आयताकार कमरे मौजूद हैं जहां चट्टानों में काटकर बनाई गई अशोका सीढियों द्वारा पहुंचा जा सकता है।

 

नागार्जुनी तीन गुफाएं –

नागार्जुन के आसपास की गुफाएं बराबर गुफाओं से छोटी एवं नयी हैं। यह गुफाएं बराबर की गुफाओं से थोड़ी दूरी पर स्थित नागार्जुनी पहाड़ी पर स्थित हैं। इनमें तीन गुफाएं शामिल हैं –

गोपी का गुफा – ये गुफा मौर्यवंशी राजा दशरथ द्वारा आजीविका संप्रदाय के अनुयायियों को समर्पित किया गया था।

वदिथीका गुफा – यह दरार में स्थित है।

वापिक गुफा – इसका निर्माण भी मौर्यकालीन माना जाता है। पहाड़ के ऐतिहासिक सप्त गुफाओं में बनी वापिक गुफा में अंकित तथ्यों से ज्ञात होता है कि इसकी स्थापना योगानंद नामक ब्राह्मण ने की थी। इन्हें दशरथ द्वारा आजीविका के अनुयायियों को समर्पित किया गया था।

 

बराबर और नागार्जुन की गुफाओं की बारे में कुछ प्रचलित जानकारियां –

 

पातालगंगा तथा अन्य स्पॉट –

गुफाओं की तरफ बढ़ने से पहले निचे ही पातालगंगा है, जिसका आकार एक छोटे कुंड जैसा है, जो पत्थरों के बिच है। जिसमें बाबा सिद्धेश्वर नाथ के दर्शन करने जाने से पहले श्रद्धालु स्नान करके ही आगे जाना पसंद करते हैं। जहाँ से आगे बढ़ने पर रास्ते में उन्हें प्राचीन सतघरवा गुफाएँ भी मिलती है। फिर थोड़ा आगे बढ़ने पर एक बढ़ा सा तालाब है, जिसमें लोग बोट चलाने का आनंद उठा सकते हैं।

 

यहां पर एक छोटा सा संग्रहालय भी है, जिसमें इतिहास के विभिन्न पहलुओं को देखा जा सकता है। श्रद्धालु सीढियों से चढ़कर पहाड़ी के ऊपर पहुंचते हैं। ऊपर बाबा सिद्धेश्वर नाथ का मंदिर है, जहाँ पहुँचने के बाद प्रकृति का अद्भुत नजारा दीखता है। आस-पास बिखरी हरियाली प्रकृति के करीब होने का एहसास कराती है। छोटे-बड़े पत्थर कुछ इस तरह से एक दूसरे पर रखे हैं जिसे देखकर लगता है कि प्रकृति ने बड़े ही फुर्सत में इन्हें कलाकृतियों के रूप में सजाया है।

 

देश का प्राचीन शिव मंदिर बाबा सिद्धेश्वर नाथ –

सिद्धेश्वर नाथ मंदिर, बराबर पहाड़ियों की सीमा में सबसे ऊंची चोटियों में से एक में स्थित है, जहाँ तक जाने के लिए सीढीयां बनी हुई है। वैसे तो पूरे देश में अनेकों प्राचीन शिव मंदिर हैं, परन्तु जब बात प्राचीनतम शिव मंदिर की हो तो मगध के बराबर पहाड़ पर स्थित सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर का नाम सर्वप्रथम आता है। इसे सिद्धनाथ तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। बाबा सिद्धेश्वरनाथ को नौ स्वयंभू नाथों में प्रथम कहा जाता है। इनकी पूजन कथा शिवभक्त वाणासुर से संबंधित होने के कारण इसे ‘वाणेश्वर महादेव भी कहा जाता है।

 

स्थानीय किंवदंतियों में मंदिर के निर्माण का श्रेय बाना राजा (जारसंध का ससुर) को दिया जाता है। लेकिन मंदिर का गुप्त काल के दौरान बनाया (जीर्णोद्धार किया) जाना भी माना जाता है। लेकिन इस स्थान का नाम ‘बाणावर’ होना इसे अपने आप में बाणासुर अर्थात महाभारत काल से जोड़ता है, तथा इसे महाभारत कालीन जीवंत कृतियों में से एक रूप में मान्यता प्रदान करता है। वैसे तो हजारों साल पुराने इस शिव मंदिर में जल चढ़ाने के लिए वर्षभर श्रद्धालु आते हैं लेकिन सावन और शिवरात्रि में तो यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इसके अलावा यहां पर लगभग एक महीने के लिए मेले का भी आयोजन होता है, जिसमें भी भक्तों की बहुत भीड़ होती है।

 

बराबर घुमने का प्लान बनाएँ –

बराबर श्रद्धालुओं, पिकनिक प्रेमियों, पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए एक जबर्दस्त कॉम्बो पैक है। सिद्धेश्वर नाथ मंदिर की वजह से बराबर एक धार्मिक क्षेत्र तो है ही, अपनी प्राकृतिक छटा की वजह से एक पिकनिक स्पॉट भी है, अक्सर पर्यटक यहां पिकनिक मनाने आते है। इसके साथ ही गुफाओं, अभिलेखों और प्राचीनतम ऐतिहासिक साक्ष्यों तथा कलाकृतियों की मौजूदगी की वजह से यह एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल भी है, इतिहास और सभ्यतों के साक्ष्य तलासने वाले लोग भी यहाँ आते रहते हैं।

 

वैसे तो आमतौर पर यहां सालों भर शिव भक्तगण व पर्यटक आते रहते हैं, लेकिन श्रावण मास, बसंत पंचमी एवं  महाशिवरात्री अनंत चतुदर्शी में भक्तों व पर्यटकों का आगमन बड़ी संख्या में होता है। मौसम को देखते हुए बराबर घुमने का सबसे उत्तम समय अक्टूबर से लेकर मार्च तक माना जाता है। यहां पर्यटकों की सुविधा के लिए जिला प्रशासन की ओर से कई इंतजाम किए गए हैं, सुरक्षा के लिए पुलिस रहती है, वहीं खान-पान और ठहरने की सुविधा भी आसानी से मिल जाती है। अगर अपने व्यस्त जिंदगी से खुद के लिए फुर्सत के दो पल निकालकर जीना चाहते हैं तो अपने परिवार के साथ बराबर की यात्रा का प्लान अवश्य बनाइए, आपको जरुर आनंद और ताजगी महसूस होगी।

 

बराबर ( बाणावर ) पहुँचाने के रास्ते –

बराबर के सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन बाणावर हाल्ट है, जो पटना गया रेलखंड पर है। ट्रेन के द्वारा पटना से बराबर जाने में दो से ढाई घंटे का समय लगता है, जबकि गया से बराबर जाने में एक से सवा घंटे का समय लगता है। यह पटना, गया, नालंदा और अरवल से सड़क के माध्यम से भी जुड़ा हुआ है। खासकर यह पटना-गया रोड से अच्छी तरह से जुड़ा है। पटना गया रोड से दो जगहों से बराबर जाने का रास्ता जुड़ता है, एक मखदुमपुर के पास बाणावर द्वार से रास्ता जाता है और दूसरा बेला के पास से बराबर के लिए रास्ता जाता है। निकटतम हवाई अड्डा पटना एवं गया का हवाई अड्डा (Airport) है।

 

बराबर के आसपास के प्रमुख पर्यटक स्थल – बोध गया – महाबोधि मंदिर, गया – विष्णुपद मंदिर, नालंदा- नालंदा विश्वविद्यालय, राजगृह – सप्त कुंड, बौद्ध स्तूप, जरासंध का अखाड़ा।

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