बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
खोद रहे नित रेत माफिया नदिया की सब रेती
चर डाले हरियाली सारी धरती की सब खेती
आम-पीपल-नीम-बरगद काट ले गए, लग रहे बबूल पर दांव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
समरसता अब खो चुकी धर्म खतरे में घट रहा
स्वदेशी घुट रही घर में समाज देश भी बंट रहा
भाई भाई को लूटे, सर्वत्र विघटन के पांव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
होली और दशहरा में लोग हिल-मिल सब डोले
सारे झगड़े वैर भुला, प्रिय मधुर सरसमय बोले
दुर्लभ वह चौपाल हो गई और वह दुर्लभतम् भाव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
रामायण की कथा खो गई, खो गई बूढ़ी मां की अमर कहानी
खो गये वीर शिवा पेशवा महाराणा, वीरांगना झांसी की रानी
दुर्लभ वह संस्कार हो गए, मिट रहे नित सभ्यता के नांव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
बिलख रही धरती सारी सिसक रही जननी प्यारी
सिमट रही दुख की भारी, तडप रही पग पग हारी
खग-विहग, जलचर दुखिया आहत सब प्राणी, कहां एक भाव से ठांव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
सुख रहे नदी सरोवर लूट रहे वन उपवन
लूट रहा पर्वत धरा-व्योम, लूट रहा हर क्षण यौवन
स्वार्थ में परमारथ लूटे मिल रहे नित नए घाव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
हा-हा कार मचा निशिदिन क्रूरता का प्रतिरूप खड़ा
दगाबाज चहुं ओर लुटेरे हिंसा-पशुता का रूप अड़ा
नित द्रौपदी पर लगते कौरव पांडव के दांव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
वन उपवन अब कहां हंसते वृक्ष लता गुल्म नहीं खिलते
सहस्त्रों गाय कटने पर भी वह शौर्य हुंकार नहीं दिखते
कंपित कत्ल की धार खड़ी अवध्या, हाय! लेकर दैन्य भाव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
आकाश चांदनी विलसे, मलयाचल चोटी शिर से
कर रही विलाप वसुधा आक्रांत, करुण पुकार आहत स्वर से
जलते छप्पर-छाजन आज, नहीं शांति सुस्थिरता की छांव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
वर्षों से शीतल सुरभित समीर व्यथित
मुरझा रहे सुमन खिले बहु रीत
हर सांझ सबेरे अनाचार, डूब रही सत्य की नाव
बन्धुवर अब तो आ जा गांव!
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