Maihar Temple अब तक हमने जाना भारत के अलग-अलग राज्यों के ऐतिहासिक मंदिर और स्मारक के बारे में जो अपने आप ही बहुत खास रहे हैं। इनका अपना एक इतिहास रहा है। आज की इस कड़ी में लेकर आए हैं एक और ऐतिहासिक मंदिर की जानकारी। यह एक ऐसा मंदिर है जिसकी शक्तियों के बारे में आज भी बात होती है। इतना ही नहीं बल्कि यह तक कहा जाता है कि इस मंदिर में आज भी आल्हा मां शारदा की पूजा करने आते हैं और मंदिर के पट खोलने के दौरान ताजे फूल मिलते हैं। तो चलिए जानते हैं दोस्तों इस शक्तिशाली मंदिर के बारे में.
हम जिस मंदिर के बारे में बात कर रहे हैं वह मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर धाम है जो विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह मां भवानी के 52 शक्तिपीठों में से एक है जिसे मां शारदा देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह शक्तिशाली मंदिर विंध्याचल पर्वत श्रेणियां के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है जहां हर रोज लोगों का हुजूम लगा रहता है।
मेहर पर्वत का नाम प्राचीन ग्रंथो में भी मिलता है। इसका उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। यदि आप मां शारदा देवी के दर्शन करने पहुंचे तो यहां पर आपको 1063 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचाना पड़ेगा। इस मंदिर का इतिहास काफी पुराना बताया जाता है। धार्मिक ग्रंथो में यह उल्लेख किया गया है कि, दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी किंतु राजा दक्ष को यह मंजूर नहीं था। हालांकि सती अपनी जीत पर अड़ी रही और उन्होंने भगवान शिव से विवाह कर लिया।
इसी बीच राजा दक्ष ने अपने यहां यज्ञ करवाया जिसमें उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया। किंतु सती के पति यानी कि भगवान शंकर को नहीं बुलाया। ऐसे में सती ने जब भगवान शंकर को ना बुलाने का कारण पूछा तो उनके पिता राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कह दिए। ये सुन सती बहुत दुखी हुई और उन्होंने यज्ञ अग्निकुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी।
इधर जब भगवान शंकर को अपनी सती के खोने का कारण पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ। कहते हैं कि उन्हें इतना क्रोध आया कि उनका तीसरा नेत्र खुल गया। ऐसे में ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने यहां पर सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया। कहते हैं जहां-जहां सती के यह अंग गिरे हैं वहां वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई है।
मेहर भी वही जगह है जहां पर सती का हार और कंठ गिरा था, इसलिए इस जगह को माई का हार यानिकि मैहर कहा जाता है। कहते हैं दोस्तों 10वीं सदी में इस मंदिर में सबसे पहले आदि गुरु शंकराचार्य ने पूजा अर्चना की थी, हालांकि बाद में यह मंदिर मैहर राजघराने के पास चला गया। इसके बाद राज परिवार के पुजारी को मंदिर के में पूजा करने का मौका मिला। हालांकि अब मंदिर का संचालन सरकार के अधीन हो चुका है।
इस मंदिर को लेकर एक ऐतिहासिक कहानी यह भी है कि, आल्हा खंड के नायक आल्हा ऊदल दो सगे भाई मां शारदा के भक्त थे। कहा जाता है कि मैहर के इसी जंगल में आल्हा ऊदल ने मंदिर की खोज की थी। दरअसल आल्हा ने इस मंदिर की तलहटी में 12 साल तक तपस्या की थी जिससे मां शारदा देवी बहुत प्रसन्न हुई थी और उन्हें अमर होने का आशीर्वाद दिया था।
कहते हैं आज भी आल्हा इस मंदिर में आते हैं और हर सुबह पूजा करते जाते हैं। मंदिर में हर रोज ताजे फूल मिलना इस बात की गवाही भी देते हैं। इतना ही नहीं बल्कि मंदिर की तलहटी में आज भी अल्लाह के कई अवशेष देखने को मिलते हैं। यहां पर आल्हा उदल का एक अखाड़ा भी है जिसमें उनकी तलवार और खड़ाऊ आम भक्तों के दर्शन करने के लिए रखी गई है।
नवरात्रि के मौके पर यहां पर एक अलग ही धूम देखने को मिलती है। यहां साल में दो बार शारदे नवरात्रि और चैत्री नवरात्रि में 9 दिन का भव्य मेला लगता है जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। कहते हैं इस मंदिर में दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है।
मैहर तक पहुंचने के लिए आप निकटतम हवाई अड्डा जबलपुर, खजुराहो, इलाहाबाद, भोपाल इंदौर से जा सकते हैं। इसके अलावा आप ट्रेन से भी मैहर पहुंच सकते हैं। नवरात्र उत्सव के दौरान ज्यादातर ट्रेन मैहर में रूकती है। इसके अलावा आप सड़क मार्ग से भी यहां पहुंच सकते हैं। आप अपने करीब बस स्टैंड से मैहर की बस ले सकते हैं। Maihar Temple | Alha Udal | Incredible Temple | Madhya Pradesh Tourism